TP न्यूज। कोरोना में बीकानेर का झकझोर देने वाला सच। वो चिल्लाते रहे, सिसकते रहे, न वार रूम ने सुना न कंट्रोल रूम ने, फिर मौत ही आ गई लेने।
? मेरी तबियत खराब हो रही है, एक घंटे से सांस नहीं आ रहा।… यहां कोई डॉक्टर नहीं है… कल शाम को एक कंपाउंडर इंजेक्शन लगाकर चला गया… एक घंटे से सांस में दिक्कत है, खांसी आ रही है, खांसी में खून भी आ रहा है। मुझे लगता है मेरे कोई गड़बड़ हो गई…।’ बहुत ही घबराई हुई आवाज में, मौत को अपने सामने खड़ा पाकर बीकानेर के जोशीवाड़ा निवासी रमेश जोशी ने अपने बेटे भूषण जोशी को यह बात फोन पर कही। रात करीब चार बजे बाद से वो सुपर स्पेशलिटी सेंटर के फ्लोर दो में तडफ़ते रहे, आवाज लगाते रहे लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। हालात ऐसे भी नहीं थे कि पास के बेड वाले को उठाकर कुछ बोल पाते। शुक्रवार शाम को एक कंपाउडर ने उनके इंजेक्शन लगाया था, इसके बाद किसी ने चैक नहीं किया। भूषण ने अपने परिचितों को फोन किया, वहां से तथाकथित वार रूम पर फोन किए गए किसी ने नहीं उठाया। कंट्रोल रूम पर फोन किया गया, वहां भी किसी ने नहीं उठाया। बाद में भूषण ने एक नंबर पर कॉल करके इसकी सूचना दी। वो स्वयं जोशीवाड़ा से अपने सिसकते पिता के पास जाने के लिए सुपर स्पेशलिटी सेंटर पहुंच गया। बाहर गार्ड ने रोक दिया। जिन चिकित्साकर्मियों की वहां ड्यूटी थी, वो चाय पीने गए हुए थे। आखिर रमेश जोशी की आवाज कोई सुनता भी तो कैसे सुनता। छह बजे तक उन्हें वेंटीलेटर पर लिया गया, लेकिन तब बहुत देर हो चुकी थी। थोड़ी ही देर में उन्होंने दम तोड़ दिया। एक साल पहले कैंसर से अपनी मां को खो चुके भूषण ने आज चिकित्सा विभाग की घोर लापरवाही के चलते अपने पिता को भी खो दिया। भूषण को इस बात का दर्द है कि जिन कर्मचारियों को इलाज के लिए पिता के पास होना चाहिए था, वो बाहर जाकर चाय की चुस्कियां ले रहे थे।
रमेश जोशी की मौत के बाद एक बार फिर सुपर स्पेशलिटी सेंटर की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यहां भर्ती लोगों को दिक्कत होने पर आखिर कौन सुन रहा है। न तो किसी बेड पर घंटी की व्यवस्था है और न ही अंदर कोई चिकित्साकर्मी नियमित रूप से ड्यूटी दे रहा है। घटना के समय कोई चिकित्साकर्मी शायद उस फ्लोर पर था ही नहीं।
कहां गए वो सीसीटीवी कैमरे?
बीच में यह दावा किया गया था कि सभी फ्लोर पर सीसीटीवी कैमरे लगा दिए जाएंगे। यह कैमरे कहां गए? अगर है तो इनका उपयोग कौन कर रहा है? किस तरह रोगी को मदद मिल रही है? बीकानेर के सुपर स्पेशलिटी सेंटर पर रोगियों की इस तरह की प्रताडऩा अब असहनीय है।
ये कैसा वार रूम है, जहां कोई नहीं
यह कहा गया था कि वार रूम २४ घंटे काम करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। रात के समय यहां कोई नहीं रहता। दिन में तो रोगी व उसके परिजन ही कुछ न कुछ कर लेते हैं लेकिन रात में चौकन्ना रहने की जरूरत है। रमेश जोशी की तबियत खराब है, यह आसपास के अन्य रोगी भी नहीं समझ सके क्योंकि वो गहरी नींद में थे। अपने बेटे के साथ बातचीत में उन्होंने कहा ‘सब घोड़े बेचकर सो रहे हैं, किसे जगाऊं’ हकीकत में उनकी इतनी हिम्मत ही नहीं बची थी कि वो किसी को बचाते। वार रूम में जिनकी ड्यूटी थी, वो ही लोग गायब थे तो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
हर बेड पर घंटी क्यों नहीं?
हर बेड पर एक घंटी होनी चाहिए जो अस्पताल के जिम्मेदार चिकित्साकर्मी से लेकर गार्ड तक को सुनाई देनी चाहिए ताकि कोई न कोई हेल्प के लिए आगे आए।
प्रशासन के प्रयासों को पहुंच रहा धक्का
सुपर स्पेशलिटी सेंटर से बड़ी संख्या में लोग ठीक होकर अपने घर पहुंच रहे हैं। इसके बाद भी इस तरह की लापरवाही सारी मेहनत पर पानी फेर देती है। अगर रात को सभी रोगियों का ऑक्सीजन लेवल चैक हो जाता तो शायद रमेश जोशी को भी वेंटीलेटर पर रात को ही ले लिया जाता।
‘पापा का सुबह फोन आया तो पता चला कि उनको सांस में दिक्कत हो रही थी। कल शाम को एक इंजेक्शन लगाने के अलावा कोई काम नहीं हुआ। रात को उनका ऑक्सीजन लेवल ही देख लेते तो गंभीरता का पता चल जाता। सुबह उनकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं था। न कंट्रोल रूम में न वार रुम में। चिकित्सा विभाग की घोर लापरवाही के कारण मेरे पिता की असमय मृत्यु हो गई।’
–भूषण जोशी, जोशीवाड़ा बीकानेर