TP न्यूज। आज मुक्ति संस्था बीकानेर के तत्वावधान में छठी राजस्थानी राष्ट्रीय काव्य-गोष्ठी शनिवार को जूम एप पर आयोजित की गयी । काव्य-गोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी कोलकाता निवासी जयप्रकाश सेठिया थे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार कवि – कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की।काव्य-गोष्ठी की संयोजक जयपुर की युवा साहित्यकार कविता मुखर एवं कार्यक्रम समन्वयक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि छठी काव्य-गोष्ठी में राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ कवि उदयपुर से ज्योतिपुंज, कोलकाता से जय कुमार रुसवा, जोधपुर के राजस्थानी कवि वाजिद हसन काजी एवं बीकानेर से कवियत्री मनीषा आर्य सोनी ने प्रभावी प्रस्तुति दी ।काव्य-गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि – कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि आज पढ़ी गयी कविताएँ समकालीन विषयों के साथ लोक में कदम मिलाती है, जोशी ने कहा कि केन्द्र सरकार को राजस्थानी भाषा के दस करोड़ से अधिक लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए संसद के इसी सत्र में प्रस्ताव पारित करते हुए राजस्थानी भाषा को मान्यता देनी चाहिए, उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा प्रेम एवं अपनत्व की भाषा होने के कारण संस्कृति के साथ चलती है, उन्होंने कहा कि मुक्ति संस्था का यह सकारात्मक प्रयास सतत जारी रहेगा ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जयप्रकाश सेठिया ने कहा कि राजस्थानी भाषा किसी भी भारतीय भाषाओं से कमजोर नहीं है, उन्होंने कहा कि राजस्थानी को मान्यता देने से हिन्दी सहित सभी भाषाओं को मजबूती मिलेगी, सेठिया ने कहा कि वे पिछले पचास वर्षों से मान्यता आन्दोलन से जुड़े हैं और जब तक राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता वे संघर्ष करते रहेंगे, उन्होंने काव्य-गोष्ठी में शामिल कवियों का आह्वान किया की वह राजस्थानी भाषा में ज्यादा से ज्यादा साहित्य रचते रहें उन्होंने मुक्ति संस्था के प्रयासों की सराहना की ।
राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ कवि उदयपुर से वागड़ का प्रतिनिधित्व करते हुए ज्योतिपुंज ने राष्ट्रीय राजस्थानी काव्यगोष्ठी में कविताएं, गीत, मनहरण पढ़कर खूब वाहवाही लूटी उन्होंने भील महिलाओं की गरीबी की व्यथा अपनी छंद रचना ‘टूटी झोरो खाटलौ’ के माध्यम से समाज को सच्चाई बताने का प्रयास किया तो वहीं ‘धके एटलू धकवा दो’ शीर्षक कविता में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया। ज्योतिपुंज ने ‘थापड़ा’ शीर्षक की कविता तथा प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते गीत ‘ढोल नगारं वजाडौ, जोर झांझरे झमकाडौ’ सुनाकर श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया साथ ही उन्होंने ‘लाकड़ा नो डांडो लाव्यो’ मनहरण पढ़कर मन मोह लिया ।जोधपुर के यशस्वी कवि वाज़िद हसन काजी ने राजस्थानी कविताएं, दोहे और गजलें सुनाकर वाहवाही लूटी उन्होंने पर्यावरण एवं प्रकृति प्रेम की अनेक मीठे-मीठे गीत सुनाये, काजी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से पेड़ो की अंधाधुंध कटाई पर चिन्ता जताई। काजी ने इंसानियत एवं आदमी के सपनों को प्रकटीकरण करने का शानदार ढंग से अनुपम प्रयास किया।
बीकानेर की कवयित्री मनीषा आर्य सोनी ने राजस्थानी भाषा की मान्यता और भाषा के सम्मान के लिए मीठे-मीठे गीत रचने, दिशा दिखाने वाला गीत किण दिस जावै पंखीड़ा कुण डगर मुंडेर बतावै, पसवाडौ बदलती धरती तथा मां के गुणगान करते शानदार प्रस्तुति देते हुए श्रोताओं का मन हर्षित कर दिया।
कोलकाता के लोकप्रिय लोक गायक जयप्रकाश रूसवा ने लोकगीत सुनाकर राजस्थानी संस्कृति का सांगोपांग चित्रण किया, उन्होंने चिड़कली गीत के माध्यम से समय के साथ चलने का आह्वान करते हुए धैर्य रखने की सलाह दी। रूसवा ने भायला राजस्थानी गीत के द्वारा चिंतन करने की बात रखी उन्होंने शुरूआती पँक्ति में “आपौ आप संभाळ भायला, मत ना चिंत्या पाळ भायला ” गीत की शानदार प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन युवा साहित्यकार कविता मुखर ने किया तथा अन्त में कार्यक्रम के समन्वयक साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया ।