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IMG 20220202 004525 81 वेब 3 टेक्नोलॉजी से बदलेगी इंटरनेट की दुनिया ! Bikaner Local News Portal अंतरराष्ट्रीय
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Thar पोस्ट, न्यूज। निकट भविष्य में इंटरनेट की दुनिया बदल जाएगी। अब विश्व में टेक्नोलॉजी से जुड़ी दिग्गज कंपनियां वेब 3 का इस्तेमाल करना चाहती हैं? इंटरनेट का उपयोग करने वालों का जीवन इस तकनीक के इस्तेमाल से कितना बदल जाएगा? इस बारे में वेब 3 टेक्नोलॉजी के समर्थकों का मानना है कि यह तकनीक इंटरनेट की दुनिया में एक नई क्रांति का आगाज करेगी। इससे वेब के विकेंद्रीकरण की शुरुआत होगी। खास बात यह है कि इसे फेसबुक या गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के बजाय आम लोग चलाएंगे. इसके अलावा इसे उपयोग करने वाले के डेटा पर उनका मालिकाना हक बढ़ जाएगा। पिछले एक साल से इस टेक्नोलॉजी के बारे में चर्चा तेज हो गई है. टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों ने भी इस पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है. वे भी इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहती हैं। बता दें कि इंस्टाग्राम और फेसबुक के मालिकाना हक वाली कंपनी मेटा ने पिछले महीने के अंत में वेब3 सॉफ्टवेयर के लिए कई ट्रेडमार्क के आवेदन किए हैं. स्पॉटिफाइ कंपनी वेब3 के विशेषज्ञों की सेवा लेना चाहती है. माइक्रोसॉफ्ट भी वेब3 पर आधारित स्टार्टअप का समर्थन कर रहा है.

आखिर वेब3 में क्या है?

वेब3 इंटरनेट के विकेंद्रीकरण के बारे में है. इसका उद्देश्य इंटरनेट यूजर को अपने डेटा पर ज्यादा नियंत्रण देना है. टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञों का मानना है कि वेब कभी काफी खुली जगह थी. इसे ऐसे लोगों द्वारा चलाया गया था जिन्होंने अपनी वेबसाइट खुद बनाई थी. ये साइटें सिर्फ पढ़ने के लिए बनी थीं. इसलिए, साइट का डेटा उपयोग करने वालों तक पहुंचता था. इसे वेब1 कहा गया था.टेक्नोलॉजी से जुड़ी फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी कंपनियों ने वेब का एक नया संस्करण तैयार किया. उनके प्लेटफॉर्म पर मौजूद कंटेंट को क्लिक करने, शेयर करने और इंटरैक्ट करने लायक बनाया गया. इन प्लेटफॉर्मों ने इंटरनेट को नए रूप में ढ़ाला. इसे वेब2 के रूप में जाना गया। वेब के साथ हमारा इंटरैक्शन, डेटा के तौर पर हमारे ऑनलाइन व्यवहार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है. कंपनियां इस जानकारी का इस्तेमाल नए प्लेटफॉर्म बनाने और यूजरों के व्यवहार के हिसाब से उन्हें विज्ञापन दिखाने के लिए करती हैं. साथ ही, ये कंपनियां उनके व्यवहार से जुड़ा डेटा तीसरे पक्ष को भी बेचती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे ऐसा वातावरण बनता है जहां यूजरों को भी यह नहीं पता होता है कि उनका डेटा कहां जाता है. उस डेटा पर यूजरों का बहुत कम या नहीं के बराबर नियंत्रण होता है।


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