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IMG 20250315 175702 अनूठी परम्परा: धधकती होलिका अग्नि में कूदा, मथुरा होली की परंपरा Bikaner Local News Portal अंतरराष्ट्रीय
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img 20250315 1757392172030066161891344 अनूठी परम्परा: धधकती होलिका अग्नि में कूदा, मथुरा होली की परंपरा Bikaner Local News Portal अंतरराष्ट्रीय

Thar पोस्ट न्यूज। इस बार संजू पंडा धधकती अग्नि में कूदा, लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ। मथुरा के फालेन गाँव में सैंकड़ो सालों से अनूठी परम्परा का निर्वहन हो रहा है। मथुरा में 40 दिन तक होली के आयोजन होते है। इसे सबसे खतरनाक माना जाता है। यहां हजारों दर्शक इसे केवल चमत्कार ही बताते है। दरअसल, भक्त प्रहलाद की कथा सभी ने सुनी होगी। उन्हें मारने के इरादे से बुआ होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग के बीच बैठी थीं। लेकिन प्रहलाद फिर भी उस आग के बीच से सुरक्षित बाहर आ गए थे। इस चमत्कारी घटना को मथुरा के फालैन गांव में एक परंपरा का रूप दिया गया है। वर्षों से यहां हर साल परंपरा के नाम पर इस खतरनाक खेल खेला जाता है। एक ब्राह्मण पंडा हर साल होली के लिए जलाई जाने वाली धधकती आग के बीच से होकर गुजरता है, लेकिन उसे कुछ नहीं होता। इसे देखने वाले भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।

ऐसे शुरूआत हुई
इस बारे में फालेन गांव में बने प्रहलाद मंदिर के पुजारी बाबूलाल पंडा के अनुसार करीब 500 साल पहले यहां आकर बसे एक साधु को सपना आया था कि गांव में नरसिंह भगवान और उनके भक्त प्रहलाद की एक मूर्ति है। साधू ने पंडा के पूर्वजों को खुदाई करने के लिए कहा। खुदाई करने पर मूर्ति निकल आई। इससे साधू बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबूलाल पंडा के पूर्वजों को आशीर्वाद दिया कि परिवार पर कभी आग का कोई असर नहीं होगा। पंडा बताते हैं कि उस जमाने से ही हमारे पूर्वज इस मंदिर के सेवक रहे हैं और तब से ही परिवार का कोई एक सदस्य आग के बीच चलने की प्रथा निभा रहा है। बाबूलाल पंडा खुद इस प्रथा का हिस्सा वर्ष 2016 में बने थे। उनका कहना है कि इस प्रथा के जरिए वे भक्त प्रहलाद की शक्ति प्रदर्शित करते हैं।

एक माह तक अनुष्ठान
फाल्गुन की पूर्णिमा से ही कुण्ड के समीप स्थित प्रहलाद जी के मंदिर में एक माह तक विशेष पूजा-अर्चना और तप करते हैं। इस बीच वे अन्न छोड़ देते हैं और दिन में एक बार केवल फलाहार करते हैं। जमीन पर सोते हैं। इस एक माह के विशेष अनुष्ठान के दौरान वे गांव की सीमा से बाहर भी नहीं जाते। होलिका दहन से 24 घंटे पहले मंदिर में हवन शुरू हो जाता है और होलिका दहन के मुहूर्त के आसपास जैसे ही उन्हें अग्नि में शीतलता का अनुभव होता है, वे कुण्ड में स्नान करते हैं और उनकी बहन जलती होलिका को अघ्र्य देती हैं, जिसके बाद धधकती होलिका के बीच गुजरते हैं और सकुशल निकल आते हैं।

इस बार 80 हजार से ज्यादा लोग बांके-बिहारी की जय का उद्घोष करते हैं। तभी संजू पंडा होलिका की धधकती आग के बीच से दौड़ता हुआ गुजरता है। बीच में अग्नि देवता को प्रणाम करता है, फिर कुछ सेकेंड में ही जलती होलिका को पार कर जाता है। शरीर बिल्कुल झुलसता नहीं है।

करीब 5200 साल पुरानी यह परंपरा मथुरा से 50 किमी दूर फालैन गांव में होलिका दहन की रात मनाई जाती है। मान्यता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भक्त प्रह्लाद को जलाने का प्रयास किया था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई थी। इससे पहले, संजू का बड़ा भाई मोनू पंडा इस परंपरा को निभाता रहा है।


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