Tp न्यूज। जो व्यंग्यकार सत्ता के विरुद्ध नहीं लिखता, वह सत्ता के पक्ष में है – मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ व्यंग्य सत्ता और व्यवस्था का स्थायी विपक्ष होता है । ऐसे में जो व्यंग्यकार सत्ता और व्यवस्था की विसंगतियों के विरुद्ध नहीं लिखता, वह सता के पक्ष में खड़ा है न कि आम जन के पक्ष में । उससे हमें सजग और सचेत रहना है ।’ ये विचार साहित्य अकादेमी में उत्तर क्षेत्र मण्डल के संयोजक एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ ने रविवार को अखिल भारतीय व्यंग्यधारा ऑन लाइन संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए रविवार को व्यक्त किए । ‘व्यंग्य और व्यंग्यकार को पहचानने के उपकरण ‘ विषयक संगोष्ठी में आचार्य ने कहा कि संवेदना के बिना व्यंग्य लिखा ही नहीं जा सकता । व्यंग्यकार संवेदना के साथ किस पर प्रहार कर रहा है और किसे सवालों के कटघरे में खड़ा कर रहा है, यह महत्त्वपूर्ण है । आचार्य ने कहा कि व्यंग्य शाश्वत नहीं वरन हमेशा सम सामयिक होता है और वह समय और समाज की विसंगतियों, विद्रूपताओं और पाखंड को पहले भी उजागर करता था और आज भी करता है किंतु समय के परिवर्तन के साथ उसे नए तरीके और तेवर के साथ उद्घाटित करने की जरूरत है ।विषय प्रवर्तन करते हुए दिल्ली से वरिष्ठ आलोचक डॉ.रमेश तिवारी ने कहा कि समाज में विसंगतियों की भरमार है, व्यंग्य के लिए बहुत अनुकूल माहौल है फिर भी खेद है कि कालातीत और कालजयी व्यंग्य रचनाएँ बहुत कम लिखी जा रही हैं । उन्होंने प्रतिदिन खबरें पढ़कर व्यंग्य लिखने वालों को सचेत करते कहा कि व्यंग्य नित्यकर्म नहीं होता, वरन वह दलित- शोषित- दमित की पीड़ा की आंखों में आंखें डालकर देखना है । जिसमें आग और टेम्परामेंट नहीं, वह भजन लिख सकता है, व्यंग्य नहीं लिख सकता । जबलपुर से वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने मुख्यवक्ता के रूप में कहा कि हिंदी कहानी और कविता ने अपना फॉर्मेट और फ्रेम तोड़ा है किंतु खेद है कि व्यंग्य ने न फ्रेम तोड़ा और न फॉर्मेट किन्तु वह स्वयं टूट रहा है । उन्होंने कहा कि हम डरे हुए व्यंग्यकार हैं जो नफा- नुकसान पहले देखते हैं इसलिए परसाई की तरह सत्ता और व्यवस्था के विरुद्ध लिखने का साहस नहीं कर सकते । उन्होंने कहा कि व्यंग्यकार समाज सुधारक नहीं होता, वह समाज को सचेत करने का काम करता है । जैसा देखता है, वैसा लिखता है । लखनऊ से वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेन्द्र वर्मा ने कहा कि व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है और उसकी आलोचना करता है । व्यंग्य हमेशा पीड़ित पक्ष के साथ रहता है और उसका सामाजिक सरोकार होता है ।बेंगलुरू से वरिष्ठ व्यंग्यकार सुधीर कुमार चौधरी ने कहा कि व्यंग्यकार विष पीकर अमृत का सृजन करता है । वह शोषण, उत्पीड़न, पाखंड आदि का जीवंत दस्तावेज होता है और वह सुधार और परिवर्तन का भी सृजन करता है । उन्होंने कहा कि जिसमें मानवीय सरोकार न हो, वह व्यंग्यकार कहलाने का अधिकारी नहीं ।शाहजहांपुर से वरिष्ठ व्यंग्यकार अनूप शुक्ल ने कहा कि व्यंग्य गरीब और वंचित के पक्ष में और अमीर के धिक्कार में लिखा जाता है । समाज के बड़े वर्ग को जो विसंगतियां प्रभावित करती हैं, उन पर व्यंग्य लिखा जाता है ।संगोष्ठी में राजस्थान से बुलाकी शर्मा, संजय पुरोहित, प्रमोद कुमार चमोली, हनुमान मुक्त, (बीकानेर) रेनु देवपुरा (,उदयपुर) मुम्बई से अलका अग्रवाल सिगतिया, जयप्रकाश पांडेय,(जबलपुर) अरुण अर्णव खरे (बंगलुरु) वीना सिंह(लखनऊ)डॉ. महेंद्र ठाकुर, राजशेखर चौबे,(रायपुर) नवीन जैन,(छतरपुर) कुमार सुरेश,(भोपाल) राकेश सोहम,(जबलपुर) सुनील जैन राही, एम एम चंद्रा (दिल्ली) विवेक रंजन श्रीवास्तव(जबलपुर), हनुमान प्रसाद मिश्र,(अयोध्या) अभिजित दूबे,(धनबिद) सौरभ तिवारी आदि सहभागियों ने भी अपने विचार साझा किए ।आभार ज्ञापन टीकाराम साहू ने किया ।