Thar पोस्ट (विशेष)। आज भी एक गांव में ट्रेन और घोड़े का अजीबोगरीब मेल देखने को मिलता है. पाकिस्तान में एक जगह ऐसी भी है जहां ट्रेन में इंजन की जगह घोड़े का इस्तेमाल किया जाता है और घोड़ा ट्रेन को खींचकर यात्रियों को उनकी मंजिल तक ले जाता है. यात्रियों के सफर की ये हैरतअंगेज कहानी पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले की जरनवाल तहसील की है. जहां सौ साल से भी ज्यादा समय से ट्रेन को घोड़े से चलाया जा रहा है। यह ट्रेन यहाँ घोडा ट्रेन के नाम से प्रसिद्ध है और बुचियाना से गंगापुर, जरनवाला तहसील के दो गाँवों के बीच चलती है। ट्रेन चलने की भी एक दिलचस्प कहानी है। आगे की सोच रखने वाले इंजीनियर सर गंगाराम उस समय अविभाजित पंजाब में रहते थे। फिरंगी साम्राज्य में पंजाब, विशेषकर लाहौर के आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए उनके पास एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी।
उस समय सन् 1890 में उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने का बीड़ा उठाया और इसके लिए उन्होंने सिंचाई के लिए गंगापुर में बहने वाली नहर से पानी निकालने के लिए एक पंप का आदेश दिया। लाहौर से बुचियाना रेलवे स्टेशन की दूरी करीब 101 किलोमीटर है और पंप को लाहौर से गंगापुर ले जाना था. गंगापुर से निकटतम रेलवे स्टेशन उस समय बुचियाना था। इतने भारी पंप को बुचियाना से गंगापुर ले जाने का कोई साधन नहीं था और बुचियाना से गंगापुर के बीच की दूरी तीन किलोमीटर थी, तब सर गंगाराम ने इस कार्य को पूरा करने के लिए एक विशेष ट्रैक बनाने का आदेश दिया। इसके लिए एक ट्रॉली लगाई गई और इस ट्रॉली को खींचने के लिए एक घोड़े को बांधा गया। उस समय सर गंगाराम का सपना साकार हुआ और पंप गंगापुर गांव पहुंचा, लेकिन उसके बाद यह घोड़ागाड़ी गंगापुर और आसपास के लोगों की जीवन रेखा बन गई।
यात्रा आज भी है जारी
1898 में शुरू हुई घोड़ा ट्रेन की यात्रा आज भी इस आधुनिक युग में बदस्तूर जारी है और यात्री अपनी विरासत से लगाव रखते हुए इसका लुत्फ उठा रहे हैं। इस ट्रेन में एक घोड़े को बांधा जाता है और एक बार में 15 लोग इस ट्रेन में बैठकर सफर कर सकते हैं. 1993 में एक बार ट्रैक के कुछ हिस्से चोरी होने और अन्य तकनीकी दिक्कतों के चलते इस ट्रेन का परिचालन बंद कर दिया गया था. उसके बाद 17 साल तक ट्रेन नहीं चल सकी। इसके बाद 2010 में ग्रामीणों की इच्छा को देखते हुए बीते युग की इस विरासत को फिर से जीवंत करने का निर्णय लिया गया।
फिर स्थानीय प्रशासन व ग्रामीणों ने इसे पटरी पर लाने का निर्णय लिया और इसके लिए धन की व्यवस्था की. फैसलाबाद प्रशासन ने 33 लाख रुपये, जरनवाला तहसील की नगर पालिका ने 40,000 रुपये और गंगापुर के ग्रामीणों ने ट्रेन को फिर से चलाने के लिए 17 लाख रुपये दिए. इस तरह घोड़ागाड़ी एक बार फिर ट्रैक पर दौड़ने लगी। इसके अलावा सर गंगाराम ने लाहौर और आसपास के इलाकों में कई भव्य इमारतों का निर्माण करवाया, जिनमें लाहौर संग्रहालय, एटिसन कॉलेज, मेयो कॉलेज, लाहौर उच्च न्यायालय, लाहौर डाकघर जैसी प्रसिद्ध इमारतें शामिल हैं। शामिल है। अर्थात मुगलों द्वारा निर्मित लाहौर नगर को आधुनिक रूप देने का श्रेय सर गंगाराम को दिया जाता है। जितेंद्र व्यास
Strange Horse train
Even today in Pakistan, a strange combination of train and horse is seen in a village. There is also a place in Pakistan where a horse is used instead of the engine in the train and the horse pulls the train and takes the passengers to their destination. This amazing story of the journey of the passengers is from Jaranwal Tehsil of Faisalabad district in Pakistan. Where the train is being run by horse for more than a hundred years
Interesting facts
This train is famous here as Ghoda or horse train and runs between Buchiana to Gangapur, two villages of Jaranwala tehsil. There is also an interesting story of running the train. Sir Gangaram, a forward-thinking engineer, lived in undivided Punjab at that time. In the Firangi Empire, he had an important responsibility for the development of Punjab, especially the area around Lahore. At that time, in the year 1890, he took the trouble to modernize agriculture and for this, he ordered a pump to extract water from the canal flowing in Gangapur for irrigation. The distance from Lahore to Buchiana railway station is about 101 km and the pump was to be taken from Lahore to Gangapur.
Why this start again?
The nearest railway station from Gangapur was Buchiana at that time. There was no means to carry such a heavy pump from Buchiana to Gangapur and the distance between Buchiana to Gangapur was three kilometers, then Sir Gangaram ordered the laying of a special track to accomplish this task. A trolley was installed for this and a horse was harnessed to pull this trolley. At that time Sir Gangaram’s dream came true and the pump reached Gangapur village, but after that this horse train became the lifeline of the people of Gangapur and surrounding areas. Went. The horse train journey, which started in 1898, continues unabated even today in this modern eraand passengers are enjoying it while being jealous of their heritage. One horse is harnessed in this train and at one time 15 people can travel by sitting in this train. At one time in 1993, the operation of this train was stopped due to theft of some parts of the track and other technical problems. After that the train could not run for 17 years. After this, in 2010, considering the wishes of the villagers, it was decided to rejuvenate this heritage of the bygone era. Again the local administration and the villagers decided to get it back on track and arranged funds for it. The Faisalabad administration gave Rs 33 lakh, the municipality of Jaranwala tehsil Rs 40,000 and the villagers of Gangapur Rs 17 lakh to get the train running again. In this way, the horse train once again started running on the track. Apart from this, Sir Gangaram got many grand buildings constructed in Lahore and surrounding areas, including famous buildings like Lahore Museum, Atchison College, Mayo College, Lahore High Court, Lahore Post Office. is included. That is, the credit for giving a modern look to the city of Lahore built by the Mughals is given to Sir Gangaram.