Thar पोस्ट, नई दिल्ली। दक्षिण एशिया में भारत सहित अन्य देशों के आर्थिक हालात बिगड़ रहे है। केवल बांग्लादेश की स्थिति बेहतर है। श्रीलंका दिवालिया होने के कगार पर है। पटना स्थित ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़ में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर डीएम दिवाकर कहते हैं कि श्रीलंका ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया में बांग्लादेश को छोड़ दिया जाए तो किसी की हालत ठीक नहीं है। ”भारत में जो ग्रोथ है, उससे ग़रीबी ख़त्म नहीं हो रही है. असमानता बढ़ रही है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत, पाकिस्तान से भी पीछे है। इसका मतलब यही हुआ कि भारत की आर्थिक तरक़्क़ी का फ़ायदा चंद लोगों को मिल रहा है और सबको मिलता तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति पाकिस्तान से बदतर नहीं होती.”प्रोफ़ेसर दिवाकर कहते हैं, ”भारत एक देश के तौर पर दिवालिया नहीं है लेकिन भारत की आबादी बड़ी संख्या में व्यक्तिगत तौर पर दिवालिया है. यह आबादी कल क्या खाएगी और किस चौराहे पर सोएगी, नहीं पता है. ऐसा ही पाकिस्तान में भी है. भारत समेत दुनिया के ज़्यादातर देशों ने विकास के जिस मॉडल को चुना है, वो टिकाऊ नहीं है.” चीन ने भी वही व्यवस्था अपनाई है लेकिन उसका पूंजीवाद स्टेट से कंट्रोल होता है. चीन की सरकार जैक मा पर भी लगाम कस देती है लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था में चोरी करने वालों को सरकार विदेश फ़रार होने देती है. भारत की अर्थव्यवस्था 80 फ़ीसदी निजी हाथों में है और इसका फ़ायदा देश के आम लोगों को नहीं मिल रहा है.”
डीएम दिवाकर कहते हैं कि अब चीन के उभार के बाद दिवालिया होने की स्थिति में कोई भी देश अमेरिका परस्त एजेंसियां आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक पर निर्भर नहीं हैं. वह कहते हैं कि अगर चीन ना होता तो पाकिस्तान और श्रीलंका कब के दिवालिया हो गए होते। किसी भी अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा का पर्याप्त होना कई मामलों में बेहद अहम है. विदेशी मुद्रा से मतलब अमेरिकी डॉलर से है. अमेरिकी मुद्रा डॉलर की पहचान एक वैश्विक मुद्रा की बन गई है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर और यूरो काफ़ी लोकप्रिय और स्वीकार्य हैं. दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है, उनमें 64 फ़ीसदी अमेरिकी डॉलर होते हैं. ऐसे में डॉलर ख़ुद ही एक वैश्विक मुद्रा बन जाता है. डॉलर वैश्विक मुद्रा है, यह उसकी मज़बूती और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ताक़त का प्रतीक है.
इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार, दुनिया भर में कुल 185 करेंसी हैं. हालांकि, इनमें से ज़्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है. कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है, यह उस देश की अर्थव्यवस्था और ताक़त पर निर्भर करता है. दुनिया भर का 85 फ़ीसदी व्यापार डॉलर से होता है. अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ भी डॉलर में ही दिए जाते हैं. इसलिए विदेशी बैंकों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है। साभार बीबीसी न्यूज़