Thar पोस्ट न्यूज । जितेंद्र व्यास। पर्यटन।
लाडेरा से आखिर क्यों ऊंट उत्सव रूठ गया ?
बात फिर से लाडेरा की। दूर तक फैले धोरों से घिरे इस गाँव ने सब का दिल जीत लिया था। ऊंट उत्सव भी आहिस्ता आहिस्ता नए सोपान तय कर रहा था। इस अनूठे उत्सव के हज़ारों लोग साक्षी रहे है तो सैंकड़ों ऐसे है जो अपनी भावना से जुड़े है। सही मायने में उत्सव में किसी का मन तभी रमता है तब वह इससे मन से जुड़ा हो। अनेक लोग ऐसे भी हैं जो केवल इस उत्सव के लिए सात समंदर से साक्षी बनने के लिए आते है। कई यूरोपीय देशों से मसलन बेल्जियम, फ्रांस, स्वीट्ज़रलैंड, स्पेन, जर्मनी सहित अन्य देशों के लोगों की भागीदारी होती है। कई सैलानी प्रतियोगिताओं में शामिल होते है। बीकानेर आने वाले विदेशी पर्यटकों में पहले नंबर पर फ्रांस और दूसरे नंबर पर जर्मनी के सैलानी है।
लाडेरा से आखिर क्यों ऊंट उत्सव रूठ गया ? यहाँ 2013 तक सब अच्छा चल रहा था। लेकिन पर्यटन विभाग में प्रशासनिक स्तर पर कुछ फेर बदल हो रहे थे। लंबे समय से ऊंट उत्सव को देख रहे सहायक निदेशक एचएम आर्य की बढ़िया पकड़ थी। उत्सव के लिए लाडेरा भी आर्य की खोज थी। लेकिन 2013 में ही उन्होंने स्वेच्छिक सेवा निवृति ले ली। तब जयपुर से नए सहायक निदेशक उपन्द्रे सिंह शेखावत को भेजा गया था। 2014 में उत्सव के दिनों में ही उनकी ट्यूनिंग लाडेरा में कम बैठते दिखी। हालाँकि उन्होंने बेहतर प्रयास किये। तत्कालीन कलेक्टर आरती डोगरा थी। वहां ऊंट उत्सव के दौरान प्रशानिक स्तर पर दिखाई जा रही अधिक सख्ती मेलार्थियों को नागवार लगी। मेले में कुछ समाजकंटक भी थे उन्हें भी मौका हाथ लग गया। पुलिस लाठीवार भी हुआ। इससे मेले का माहौल धीरे धीरे बिगड़ने लगा। मेले में शामिल लोग लाठियां व् अन्य हथियार ले आये। खाली बोतलों में मिटटी भर कर देशी विदेशी लोगों पर फेंकी गयी। माहौल तेज़ी से बिगड़ा। प्रशासन के सामने मेले से लोगो को निकालने का संकट हो गया। जिला कलेक्टर ने रात में आरएसी को बुलाकर मेला किसी तरह खाली करवाया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बीकानेर के धोरों पर किसी तरह का आयोजन करवाने पर रोक लगा दी थी। उत्सव की अवधि भी तीन दिन के बजाय दो दिन कर दी गई। इस तरह खूबसूरत धोरों से हटकर यह उत्सव शहर में सिमट गया। लेकिन वर्षों बाद 2023 में रायसर के धोरों में इस बार आयोजन है। लगातार जारी…