


हरख बीकाणा’ में एकत्रित हुए शहर के 251 मौजीज लोग। बीकानेर नगर स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर बीआईटीओ और स्मार्ट बीकानेर द्वारा जूनागढ़ परिसर में हरख बीकाणा कार्यक्रम आयोजित किया गया।
Thar पोस्ट। श्री गढ़ गणेश को 538 लड्डूओं का भोग और शंखनाद के साथ कार्यक्रम कि शुरुआत हुई।



कार्यक्रम की मुख्य अतिथि बीकानेर पूर्व विधायक सुश्री सिद्धि कुमारी थी। उन्होंने कहा कि पांच सौ सैंतीस वर्षों का इतिहास समेटे हुए बीकानेर देश और दुनिया में विशेष पहचान रखता है। हमें इस ऐतिहासिक शहर का नागरिक होने के नाते हमें इस पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीकानेर की परमपराएं और रीति-रिवाज अपने आप में विशिष्ट हैं। उन्होंने नगर स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दी और कहा कि शहर के विकास में प्रत्येक नागरिक अपनी भागीदारी निभाएं।
बीकानेर (पश्चिम) विधायक श्री जेठानंद व्यास ने कहा कि छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बीकानेर का इतिहास स्वर्णिम रहा है। राव बीकाजी का बसाया बीकानेर अपनी अनेक विशेषताओं के कारण प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि यहां के लोग देश और दुनिया में बीकानेर को नई पहचान दिल रहे हैं। विधायक ने नशा मुक्त बीकानेर की परिकल्पना को साकार करने के लिए आमजन को नशे से दूर रखने और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने का आह्वान किया।
पुलिस महानिरीक्षक श्री ओमप्रकाश ने कहा कि बीकानेर का अपनापन देशभर में मिसाल है। यहां के लोग रसगुल्लों की तरह मधुर हैं। उन्होंने कहा कि शहर के सभी नागरिकों द्वारा सांझा तरीके से शहर का स्थापना दिवस मनाया जाना अच्छी परम्परा है।
कार्यक्रम के संयोजक अक्षय आचार्य ने बताया कि कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए लालेश्वर महादेव मंदिर के अधिष्ठाता स्वामी विमर्शानंद महाराज ने कहा कि पूर्व जन्मों के अच्छे कर्मों के कारण बीकानेर जैसे पावन धरा पर जन्म मिलता है। उन्होंने कहा कि यह धर्म, कर्म और आध्यात्म की नगरी है।
इससे पहले कार्यक्रम संयोजक डॉ. चंद्र शेखर श्रीमाली ने कार्यक्रम की प्रस्तावना की जानकारी दी और बताया कि उनके द्वारा बीकानेर के लगभग एक हजार प्रवासी नागरिकों की दूरभाष निर्देशिका तैयार की जा रही है। जिससे आवश्यकता के अनुसार इनका सहयोग शहर के विकास के लिए किया जा सके।
अतिथियों और प्रतिभागियों ने गढ़ गणेश की पूजा अर्चना की और 538 लड्डुओं का भोग लगाया। सभी ने रंग-बिरंगे गुब्बारे हवा में छोड़कर खुशहाली का संदेश दिया। आयोजकों द्वारा सभी प्रतिभागियों पचरंगी साफे पहनाए गए और हरख बीकाणा प्लेट के साथ फोटो खींचने की होड देखने को मिली।
इस दौरान पद्मश्री श्री अली गनी, जैन महासभा के अध्यक्ष श्री विनोद बाफना, जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष श्री द्वारका प्रसाद पचीसिया तथा पूर्व महापौर श्री नारायण चोपड़ा अतिथि के रूप में मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन संजय पुरोहित ने किया।

इस दौरान सुमन छाजेड़, उद्यमी अविनाश मोदी, प्रो-वाईस चांसलर हेमंत दाधीच, गृह विज्ञान महाविद्यालय अधिष्ठाता डॉ विमला डुकवाल, सार्दुल क्लब अध्यक्ष हनुमान सिंह, सुरेश कुमार जैन, भारत भूषण गर्ग, शरद दत्ता आचार्य, डॉ श्याम अग्रवाल, श्रीनारायण आचार्य, गोविन्द भादू, चक्रवती नारायण, हरीश बी. शर्मा, अरुण व्यास, कंचन राठी, ऋतु मित्तल, गिरधर व्यास, सुधा आचार्य, सुषमा बिस्सा, डॉ. अमित व्यास, राजेंद्र स्वामी, अनुज मित्तल, बिठ्ठल बिस्सा, अनिरुद्ध चौधरी, भगवान सिंह मेड़तिया, सरिता चांडक, देवेंद्र सिंह कसवा, विपिन लड्ढा, राजेंद्र जोशी, श्रीकांत व्यास, सुमन मंडा, गरिमा विजय, डॉ. आरके धुडिया आदि मौजूद रहे।
अक्षय तृतीया को तेरापंथ भवन में होंगे वर्षीतप के पारणे
गंगाशहर। जैन धर्म में वर्षीतप (या वर्षी तप) एक अत्यंत उच्च कोटि का आध्यात्मिक अनुष्ठान माना जाता है। वर्षीतप का अर्थ है एक वर्ष तक नियमित तपस्या करना। इस तपस्या में साधक एक वर्ष तक नियत क्रम से उपवास (आहार नियम) और अन्य आत्मशुद्धि के अभ्यास करते हैं। इसका उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना, कर्मों का क्षय करना और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ना है।
जैन धर्म की दृष्टि में वर्षी तप आध्यात्मिक अनुष्ठान है। इसमें साधक का मूल लक्ष्य चित्त शुद्धि है,जबकि वर्ष भर चलने वाले इस तप से लोगों को निरोगी काया भी मिलती है। ये उद्गार पत्रकारों से वार्ता के दौरान आचार्य महाश्रमण के अज्ञानुवर्ति उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार ने कही। उन्होंने कहा वर्षीतप वर्ष भर चलने वाला पूर्ण वैज्ञानिक अनुष्ठान है। तभी ढाई हजार वर्ष से यह निरंतर साधकों के अभ्यास, अनुभव व प्रयोग में है। जीवन में आरोग्यता व सरलता आदि इसके भौतिक लाभ भी हैं।
वर्षीतप मुख्य विशेषताएँ
साधक एक दिन भोजन करते हैं और एक दिन उपवास करते हैं, तथा कई अन्य नियमों का पालन करते हैं।
भोजन भी बहुत सीमित मात्रा में और संकल्प पूर्वक लिया जाता है।
तपस्या के साथ-साथ साधक ध्यान, स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन) और प्रार्थना करते हैं।
वर्षी तप के अंत में अखंड शांति और आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है।
प्रसिद्ध उदाहरण: भगवान महावीर ने दीक्षा लेने के बाद 13 महीने 10 दिन तक कठोर तप किया था, जिसे वर्षी तप का आदर्श माना जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से, वर्षी तप:
संयम और त्याग का चरम अभ्यास है।
शरीर को साधन मानकर आत्मा के शुद्धिकरण पर बल देता है।
अहंकार, आसक्ति और इच्छाओं पर नियंत्रण सिखाता है।
मोक्षमार्ग में सहायक है, क्योंकि तप से कर्मों का निर्जरा (क्षय) होता है।
चाहें मुनि हों या श्रावक (गृहस्थ), जो भी साधक वर्षीतप करता है, वह जैन धर्म में अत्यंत श्रद्धा और सम्मान का पात्र बनता है।
46 वर्षों सेे लगातार कर रहे है वर्षीतप
आचार्य तुलसी से दीक्षा लेने वाले गंगाशहर के जन्मे मुनिश्री कमल कुमार ने बताया कि वे पिछले 46 वर्षों से लगातार वर्षीतप कर रहे है। इसके अलावा मुनिश्री विमल विहारी जी की प्रथम,मुनिश्री श्रेयांस कुमार की 9 वां वर्षीतप है। वहीं मुनिश्री श्रेयांस कुमार ने धर्मचक्र की तपस्या,एक से 16 तक तपस्या की लड़ी,21 दिनों की तपस्या,2 मासखमन भी किये है। तो मुनिश्री मुकेश कुमार का प्रथम वर्षीतप है। उन्होंने एक बेला,2 तेला व 9 की तपस्या भी की है। मुनि श्री नमि कुमार ने 1 से 16,18 से 21,23 और 23 से 39 तक लड़ी,51 व 62 की तपस्या की है। अभी गंगाशहर पधारने के बाद भी लम्बी -लम्बी तपस्या निरन्तर कर रहे हैं।

तेरापंथ भवन में होगा पारणा
उन्होंने बताया कि जैन समाज जनों द्वारा पूरे 13 माह तक एक दिन छोड़कर एक दिन उपवास किया जाता है। इस तपस्या को वर्षीतप कहा जाता है। इसमें एक दिन बिल्कुल कुछ नहीं खाया जाता है। वहीं एक दिन केवल दो समय सुबह सूर्योदय के बाद और शाम को सूर्यास्त के पहले खाते हैं। इस प्रकार पूरे 13 माह व्रत करने के बाद वर्षीतप का पारणा आखातीज के दिन होता है। जिसमें गन्ने के रस से तपस्या करने वाले को पारणा करवाया जाता है। इस बार भी तेरापंथ भवन में यह आयोजन 30 अप्रैल को होगा। जिसमें 21 जने पारणा करेंगे।
जैन समाज का सबसे बड़ा तप है।
चैत्र माह से होता है शुरू वर्षीतप
वर्षीतप की शुरूआत चैत्र माह में हो जाती है। जिसको भी यह व्रत करना होता है चैत्र माह से एक दिन छोड़कर एक दिन उपवास करने लगता है। ताकि आखातीज के दिन पूरे 13 माह पूर्ण हो जाएं। यह जैन समाज का सबसे बड़ा तप कहलाता है। क्योंकि इसमें करीब 6 माह से अधिक का व्रत हो जाता है। इस चैत्र माह में भी गंगाशहर में अनेक श्रावक श्राविकाओं ने तपस्या प्रारंभ की है।




