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DSC 0827 scaled ऊंटनी के दूध पर फिर हुआ मंथन, पर्यटन विकास में ऊंट की महती भूमिका Bikaner Local News Portal पर्यटन, बीकानेर अपडेट
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Tp न्यूज़,बीकानेर। देश के एक मात्र बीकानेर स्थित राष्ट्रीय उस्ट्र अनुसन्धान केंद्र में ऊँटनी के दूध पर आज फिर मंथन हुआ। ऊंटनी के दूध के साथ रक्त एवं यूरिन में विद्यमान रोग-प्रतिरोधक गुणों को ध्यान में रखते हुए रेगिस्तानी जहाज ‘ऊँट‘ को अब औषधिक भण्डार के रूप में स्थापित करना हमारे अनुसंधान का मुख्य लक्ष्य होगा ताकि ऊँट की उपयोगिता बनी रहे। यह विचार शुक्रवार को एनआरसीसी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने व्यक्त किए। डॉ.साहू ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि जाहिर तौर पर बदलते परिवेश में ऊँट की संख्या व उपयोगिता प्रभावित हुई है परंतु केन्द्र ने मधुमेह, क्षय रोग, एलर्जी, ऑटिज्म आदि मानवीय रोगों में ऊँटनी के दूध की लाभकारिता को सिद्ध किया है। ऊँट के रक्त के माध्यम से यह केन्द्र एन्टी स्नेक वेनम उत्पादन की दिशा में सफलता की ओर अग्रसर है तथा इस सफलता से ऊँट, बायोमेडिकल अनुसंधान हेतु उपयोगिता दर्शाता है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन एवं इस पशु की अनुकूलन क्षमताओं को दृष्टिगत रखते हुए ऊँट को एक ‘प्रायोगिक पशु‘ के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है। अब इसके दूध के साथ रक्त एवं यूरिन की गुणवत्ता को जानने हेतु तीव्र अनुसंधानिक प्रयास किए जाएंगे ताकि मानव जीवन को इस प्रजाति के माध्यम से एक नई सौगात मिले सके। डॉ. साहू ने पत्रकार वार्ता में कहा कि ऊँट पालकों की आय बढ़ाने की दिशा में यह केन्द्र निरंतर कार्य कर रहा है। ऊँट राजस्थान का राज्य पशु है। इसे एक गाइड लाइन तय करते हुए विक्रय करने पर विचार किया जाना चाहिए जिससे ऊँट पालकों को लाभ मिलेगा एवं इस प्रजाति की संख्या में भी वृद्धि हो सकेगी। उन्होंने कहा कि उष्ट्र प्रजाति की घटती संख्या के मद्देनजर इसकी उपयोगिता बनाए रखने हेतु प्रजाति की औषधीय उपयोगिता पर यह अनुसंधान केन्द्र सतत रूप से काम कर रहा है। उन्होंने उष्ट्र पर्यटन विकास के तहत कहा कि अरब आदि देशों में उष्ट्र उत्पादन के पीछे मुख्य कारण उष्ट्र दौड़ की लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए भारत देश में भी इसके प्रचलन की असीम संभावनाएं हैं। अतः केन्द्र इस ओर भी प्रयासरत रहेगा कि उष्ट्र नस्लों की दौड़ प्रयोजन से शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाने एवं विषेषकर जैसलमेरी नस्ल के ऊँटों को प्राथमिकता देते हुए इन्हें दौड़ हेतु तैयार किया जाएगा। डॉ.साहू ने लेह लद्दाख क्षेत्र में दो कूबड़ीय ऊँट प्रजाति की संख्या संख्या बढ़ाने की बात भी कही। अंत में निदेशक ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा ऊँट प्रजाति को बचाने हेतु हर संभव अनुसंधानिक दृष्टि से प्रयास किया जाएगा। साथ ही प्रत्येक पहलुओं से जुड़े शीघ्र एवं बेहतर परिणाम हेतु समन्वयात्मक अनुसन्धान को तरजीह दी जाएगी। इस पत्रकार वार्ता के दौरान ऊँटनी के दूध की उपलब्धता, विपणन, घटते चरागाह आदि विभिन्न पहलुओं पर पत्रकार बंधुओं द्वारा वैज्ञानिकों के साथ खुलकर चर्चा की गई। प्रेस वार्ता में केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल, डॉ.समर कुमार घौरूई एवं डॉ.सुमन्त व्यास ने भी एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों आदि के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। 


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