TP न्यूज़। डाॅ. वत्सला पांडेय की कविताएं शब्दों से सज्जित महज कहने भर की कविताएं नहीं हैं, अपितु यह अहसास है जो पढ़ने या गुनने वाले के भीतर धीरे-धीरे गहरे तक उतरकर सम्मोहन की कैफियत ताजी कर देता है।यह कहना था कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी का, जो रविवार को मुक्ति संस्थान के तत्वावधान् में वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. वत्सला पांडेय की काव्य कृति ‘बांस के वनों के पार’ के विमोचन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
जोशी ने ‘बांस के वनों के पार’ की कविताओं को अद्भुत बताते हुए कहा कि डाॅ. पांडे की यह किताब, कविता के पाठकों को नए प्राकृतिक सौंदर्य और दार्शनिक अंदाज के साथ को समझने की नई दृष्टि प्रदान करती है। यह कविताएं ताजगी भरी हैं। डाॅ. पांडेय की कविताएं सामाजिक विदू्रपताओं के विरूद्ध स्वर प्रदान करती हैं।
अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार नदीम अहमद ‘नदीम’ ने कहा कि डाॅ. वत्सला पांडेय कविता लिखने के लिए कविता की औपचारिकता पूर्ण नहीं करती वरन जिस तरह से परिवेश को समझती हैं, उन्हें मूल रूप से शब्दों का जामा पहना देती है। तभी आम आदमी के दिल की बात सी लगती हैं, इनकी कविताएं। ‘सपने नहीं आते अब’, ‘राह की मोड’, ‘अपने अहसास के लिए’, ‘मैंने बनाया था’, और ‘बस एक ही बार’ जैसी कविताओं को पढ़कर कहा जा सकता है कि डाॅ. पांडेय शाब्दिक आडंबर से सर्वथा अलग हैं। इनकी कविताओं में प्रयुक्त शब्द आम बोलचाल के शब्द हैं, तभी एक साधारण पाठक भी बहुत जल्दी इनकी कविताओं से जुड़ जाता है।
विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए युवा कवि एवं जनसंपर्क विभाग के सहायक निदेशक हरि शंकर आचार्य ने कहा कि डाॅ. पांडेय धीर-गंभीर लेखन की प्रतिनिधि कवियत्री हैं। इनकी रचनाएं अंतर्मन को झकझोरती हैं। डाॅ. पांडेय को नीरसता नहीं भाती। वह सपाट बयानी से नहीं घबराती। लयबद्धता और कम शब्दों में गहरी बात पाठक तक पहुंचाना इन कविताओं की सबसे बड़ी खासियत है।
आलोचक डाॅ. रेणुका व्यास ‘नीलम’ और ऋतु शर्मा ने काव्य संग्रह पर पत्रवाचन किया। दोनों ने डाॅ. पांडेय की कविताओं के मर्म पर अपनी बात रखी तथा कहा कि यह कविताएं सीधे पाठक मन तक उतरती हैं। डाॅ. पांडेय ने अपनी साहित्य यात्रा के बारे में बताया और इंडिया नेटबुक्स ,नोएडा, दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक बांस के वनों के पार में से सात कविताओं का वाचन किया। इस अवसर पर विजय कुमार पांडेय, संजय जनागल, दिनेश चूरा, केशव आचार्य, अशोक पुरोहित आदि मौजूद रहे।