Tp न्यूज़। भारतीय चिंतन में है वैश्विक कल्याण का सूत्र विविधता में एकात्मता भारत का जीवन दर्शन है जो दुनिया को संघर्ष से समन्वय की ओर जाने की राह दिखाता है। यह कहना है ख्यातनाम लेखक और चिंतक हनुमान सिंह राठौड़ का । राठौड़ राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) की ओर से दत्तोपंत ठेंगड़ी शताब्दी समारोह व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। हनुमान सिंह राठौड़ ने वैश्विक परिदृश्य में भारतीय एकात्म चिंतन विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि समग्र कल्याण केवल आर्थिक समृद्धि के आधार पर नहीं हो सकता, आज दुनिया भी भारत के इस विचार को मानने लगी है। भारत का विचार है कि सृष्टि में सर्वत्र समन्वय है, संघर्ष नहीं । जड़ और चेतन दोनों में एक ही तत्व है।लेकिन जब दिखती हुई विविधता में छिपे हुए एकता के सूत्र को भूलते हैं तो दुःख और झगड़े उत्पन्न होते हैं। हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा कि विश्व में आज जो संघर्ष का माहौल है,उसका कारण अपने मत को ही स्थापित करना है, जबकि हमारे यहां सत्य तक पहुंचने के अनेक मार्ग बताए गए है । उन्होंने कहा कि व्यक्ति, परिवार, समाज और विश्व अलग-अलग खांचे में बंधे नहीं है बल्कि सबका एक दूसरे का सतत् संबंध है, व्यक्ति का कल्याण जगत के कल्याण में ही निहित है । उनका कहना था कि भारत एक संस्कृति है जो अपनी विविधता का उत्सव मनाती है, विविधता में एकता का यही सूत्र मानव कल्याण का मार्ग है। कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ योगेंद्र भानु द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से तथा अंत डॉ रिछपाल सिंह द्वारा कल्याण मंत्र से हुआ। धन्यवाद ज्ञापन संगठन अध्यक्ष डॉ दिग्विजय सिंह शेखावत ने एवं संचालन संगठन मंत्री डॉ दीपक शर्मा ने किया। रुक्टा (राष्ट्रीय)) की तरफ से ऑनलाइन आयोजित इस व्याख्यान में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष प्रो जे पी सिंघल, संगठन मंत्री महेंद्र कपूर, महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा सहित देशभर के 300 से अधिक शिक्षकों ने भाग लिया। डॉ नारायण लाल गुप्ता महामंत्री