


Thar पोस्ट न्यूज। तकनीक अब बदल गई है। आधुनिक हथियारों व ड्रोन का इस्तेमाल होने लगा है। आखिर यह ड्रोन कैसे काम करता है ? देश या शहर पर दुश्मन ड्रोन से हमला करता है तो वहां अचानक ब्लैकआउट यानी पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है। क्यों हमले के वक्त लाइटें बंद कर दी जाती हैं और पूरा इलाका अंधेरे में डूब जाता है?


दरअसल ड्रोन, जिन्हें अनमैंड एयरियल व्हीकल (UAV) भी कहा जाता है, एक मानव रहित हवाई यान है जो दूर से या स्वचालित रूप से नियंत्रित किया जा सकता है. ये रोटरी प्रोपेलर या पंखों का उपयोग करके उड़ते हैं, और इन्हें निगरानी, फोटोग्राफी, वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि और सैन्य कार्यों में उपयोग किया जाता है. लेकिन अब युद्ध मे प्रमुखता से उभरा है।
लक्ष्य को पहचानते है ये
ड्रोन या मिसाइल आधुनिक तकनीक से लैस होते हैं जो विजुअल यानी दृश्य या इन्फ्रारेड सेंसर के जरिए अपने लक्ष्य को पहचानते हैं। अगर किसी शहर में रोशनी जल रही हो तो यह दुश्मन के उपकरणों के लिए किसी गाइड की तरह काम करती है। अंधेरे में उड़ता हुआ ड्रोन या दुश्मन का विमान जमीनी गतिविधियों को आसानी से नहीं देख पाता जिससे टारगेट पहचानना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि हमले के समय रोशनी बंद कर दी जाती है ताकि दुश्मन को भ्रम हो और वह निशाना चूक जाए।
ड्रोन या मिसाइल जब हमले के लिए आते हैं तो उनका उद्देश्य होता है किसी खास जगह को निशाना बनाना — जैसे कि सेना की छावनी, एयरबेस, पुल, पॉवर स्टेशन या कोई कम्युनिकेशन टॉवर। अगर ऐसे इलाकों में लाइट जलती रहती है तो दुश्मन के प्रिसिजन गाइडेड हथियार यानी सटीक निशाना लगाने वाले हथियार को लक्ष्य तय करने में आसानी होती है। लेकिन अगर लाइट बंद कर दी जाए तो दुश्मन को भ्रम होता है और उसकी मिसाइल या बम किसी दूसरी जगह गिर सकता है, जिससे जान-माल का नुकसान टल सकता है।
ब्लैकआउट होता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि आम लोग और उनके घर आसानी से दुश्मन की निगाह में नहीं आते। रोशनी से कोई भी मोहल्ला या कॉलोनी स्पष्ट दिखाई देती है लेकिन अंधेरे में सब कुछ एक जैसा नजर आता है। इसलिए युद्ध के समय शहर में ब्लैकआउट किया जाता है ताकि आम लोगों को निशाना बनने से बचाया जा सके। इससे दुश्मन के लिए तय करना मुश्किल हो जाता है कि कौन सा इलाका सैन्य ठिकाना है और कौन सा रिहायशी क्षेत्र।
ब्लैकआउट का एक और बड़ा कारण यह है कि इससे रणनीतिक ठिकाने — जैसे कि सैन्य कमांड सेंटर, हथियार डिपो या महत्वपूर्ण सरकारी इमारतें अंधेरे में छिप जाती हैं। अगर रोशनी होती है तो ये इमारतें और क्षेत्र दुश्मन के ड्रोन कैमरे या थर्मल इमेजिंग सेंसर से दिखाई दे सकते हैं। लेकिन अंधेरे में इनकी पहचान मुश्किल हो जाती है जिससे वे सुरक्षित रहते हैं।
ब्लैकआउट की पुरानी परंपरा क्या है?
ब्लैकआउट कोई नई रणनीति नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी जर्मनी, इंग्लैंड और जापान जैसे देशों में जब बमबारी होती थी तब शहरों को अंधेरे में डुबो दिया जाता था। यह तरीका आज भी कारगर माना जाता है, खासकर तब जब दुश्मन ड्रोन या सैटेलाइट से हमला करता है। अंधेरा होने से कैमरे और सेंसर काम नहीं कर पाते और शहर बच सकता है।
हमलावर खुद भी बचता है
अगर हम बात करें हमलावर ड्रोन की, तो वह खुद भी लाइट बंद कर उड़ता है ताकि उसकी पहचान ना हो पाए। इसे EMCON यानी Emission Control कहा जाता है। इसमें ड्रोन कोई रेडियो, लाइट या किसी तरह की पहचान देने वाली चीजें नहीं छोड़ता ताकि दुश्मन का रडार या एयर डिफेंस सिस्टम उसे पकड़ ना सके।
आजकल के ड्रोन सिर्फ कैमरा से ही नहीं बल्कि थर्मल, नाइट विजन, GPS और AI टेक्नोलॉजी से लैस होते हैं। ऐसे में ब्लैकआउट करना जरूरी हो गया है ताकि सभी सेंसर को भ्रमित किया जा सके।

