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बीकानेर का जूनागढ़ किला, देश के बेमिसाल किलों में से एक है। इस किले को चिन्तामणि दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। बीकानेर पहुंचने वाला प्रत्येक सैलानी इसे देखने के लिए अवश्य पहुंचता है। इस किले को देखने पहुंचने वाले पर्यटकों को शाहीपन का अहसास होता है। इसकी वजह है इसकी भव्यता। मै इस किले में अनेक बार गया हूं और हर बार कुछ न कुछ नई जानकारी के साथ लौटा। जूनागढ का भव्य किला स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। 

वर्षों तक हुआ निर्माण

जूनागढ़ का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ था। बीकानेर के महाराजा राय सिंह ने 1589 ई. में इसका निर्माण करवाया था। इनके बाद अनेक राजा हुए जिन्होंने अपने नाम से जूनागढ़ किले में महल बनवाए। इस तरह किले का विस्तार होता गया। महाराजा रायसिंह ट्रस्ट द्वारा इसे संचालित किया जा रहा है। किले के अन्दर ही ट्रस्ट का प्रशासनिक कार्यालय है।      
          जूनागढ़ में प्रवेश करने पर हम देखते हैं कि यहां  एक ओर दीवार पर सती के हाथों की शिल्पकारी है। आगे बढऩे पर हमें और अधिक भव्यता का अहसास होता है। दुलमेरा के लाल पत्थरों और उस पर की गई बारीक स्थापत्य कला देखते ही बनती है। तराशे गए पत्थर ऐसे लगते हैं मानों ये हमारा स्वागत कर रहे हैं। यहां मुख्य प्रवेशद्वार जिसे करण प्रोल कहा जाता है यहां से हमें जूनागढ़ की भव्यता का पता चलता है। किले के प्रथम तल पर टिकट खिड़की है जहां से जूनागढ़ किला देखने के लिए टिकट खरीदे जाते हैं।  

img 20220428 131235554396798004003137 बीकानेर स्थापना दिवस विशेष : जूनागढ़ में गोपियां करती है नृत्य ! Bikaner Local News Portal पर्यटन

होली के लिए तालाब के बीच मंच

यहां हम चारों ओर देखते हैं कि यहां संगमरमर और सफेद रंग की भव्यता अधिक है। यह वह स्थान है जहां होली खेली जाती थी। यहां पर दीवारें और मंडप इसकी पुष्टि करते हैं। यहां तेज गर्मी होने के बाद भी सुकून का अहसास होता है। यहां कुछ समय बिताने के बाद शुरू होती है महलों की भव्यता।

महलों में हाथ का हुनर

जूनागढ़ के अन्दर महलों की भव्यता देखकर हर कोई अचरज से भर जाता है। विक्रम विलास महल, गजमन्दिर महल, बादल महल, अनूपमहल की छटा देखते ही बनती है। बादल महल में प्रवेश करने पर आपको बीकानेर जैसे शुष्क इलाके में वर्षा ऋतु का अहसास होता है। कक्ष की दीवारों पर फव्वारे भी लगे हुए थे। नीले-सफेद बादलों के चित्र मन मोह लेते हैं। इसी तरह फूल महल की आभा देखते ही बनती है। महाराजा रायसिंह ने इसका निर्माण करवाया था। काले रंग के द्वार पर राधा-कृष्ण के चित्र है। यहां सूर्य देव की सात घोड़ों पर सवार प्रतिमा भी है। 

अनेक शैलियों का प्रभाव

जूनागढ़ में आपको अनेक चित्रकारी की अनेक शैलियों के भी साक्षात होते हैं। इसमें यूरोपियन और ईरानी शैली है। अनेक महलों में देखने पर आप देखेंगे कि शीशों पर उस्ता कला  का बेजोड़ कार्य किया हुआ है। यूरोप की नीली चीनी मिट्टी के झरोखे आकर्षक है। 

जूनागढ़ में देखने लायक इतना कुछ है कि इस बारे में लिखने के लिए शब्द भी कम पड़ते हैं। यहां प्रत्येक महल का अपना आकर्षण है। यहां एक ऐसा प्राचीन बिस्तर है जो कि झूला भी बन जाता है यानि तकनीक उस जमाने में भी कमाल की थी। इस झूले में एक कक्ष में पलंग के ऊपर कड़े लगे हुए हैं जिन पर पलंग लटकाकर झूला बनाया जा सकता है। इसके अलावा दरबार हॉल एक भव्य कक्ष है। रियासतकाल में यह दीवान-ए-आम हुआ करता था। बीकानेर में यही वह स्थान था जहां कि राजा, जनता की समस्याएं सुनते थे व उनका निराकरण करते थे।

यहां नृत्य करती है गोपियां

जूनागढ़ के विभिन्न महलों की अपनी खूबिया हैं। यहां एक ऐसे झूले के बारे में बता रहा हूं जब इस झूले को झुलाया जाता है तो इसकी चौखट पर लगी गोपियां नाचने लगती है। हालांकि वर्तमान में जूनागढ़ में वस्तुओं को हाथ लगाने की अनुमति नहीं है इसलिए हम नृत्य नहीं देख सकते। 

प्रथम विश्वयुद्ध का विमान

 प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी को विजय चिन्ह के रूप में मिला हविलेंड विमान का भी खास आकर्षण है। जहाज के द्वारा इसे 1920 में  बीकानेर लाया गया था। इस विमान के लिए महल का एक पूरा कक्ष समर्पित किया गया था। जूनागढ़ में एक कक्ष आपको दुर्लभ प्राचीन हथियार देखने को मिलेंगे। 


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