Thar पोस्ट, न्यूज। विश्व के वैज्ञानिकों ने अब उस दिशा में तेज़ी से काम शुरू कर दिया है जिसमे वे प्रकृति की बेकार प्राकृतिक पदार्थों व गैसों का इस्तेमाल कर सकें। वाहनों से निकलने वाली गैस co2 का फिर से ईंधन के रूप में हो सकेगा। दरअसल तेजी से बढ़ती वैश्विक आबादी ने दुनिया को दो बड़े संकटों के मुहाने पर ला खड़ा किया है। एक है बढ़ता प्रदूषण और दूसरा तेजी से खत्म होते परंपरागत ईंधन। कैसा हो अगर ये दोनों समस्याएं ही एक-दूसरे का समाधान बन जाएं। ये कोई कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविकता बनने जा रही है। अमेरिका स्थित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी प्रणाली विकसित करने में सफलता हासिल की है, जिसके जरिए कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों को ईंधन में बदला जा सकेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह हानिकारक गैसों को उपयोगी ईंधन में परिवर्तित कर उसका प्रयोग न केवल कारों से लेकर हवाई जहाज तक, बल्कि विविध रासायनिक कच्चे सामानों के निर्माण में भी किया जा सकेगा। वैज्ञानिकों ने इस प्रणाली में लैंथनम, कैल्शियम और आयरन ऑक्साइड के मिश्रण से एक झिल्ली तैयार की है, जोकि इस महत्वपूर्ण खोज का आधार है यह कार्बन डाई ऑक्साइड से ऑक्सीजन को एक तरफ निकाल देती है, जिसके चलते दूसरी तरफ केवल कार्बन मोनो ऑक्साइड रह जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान निकली कार्बन मोनो ऑक्साइड का प्रयोग सीधे ईंधन के रूप में किया जा सकता है या फिर इसे हाइड्रोजन और पानी के साथ मिलाकर कई तरह के तरल हाइड्रोकार्बन ईंधन तैयार किए जा सकते हैं। इसके अलावा इससे मेथेनॉल (जो कि मोटर वाहन का एक ईंधन है) जैसे रसायन भी बनाए जा सकते हैं।यह प्रक्रिया सुइट टेक्नोलॉजी जिसे कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (सीसीयूएस) के रूप में जाना जाता है उसका हिस्सा बन सकती है। इसके जरिए बिजली उत्पादन पर्यावरण के लिए घातक नहीं रहेगा क्योंकि इसके लिए जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, जोकि ग्लोबल वार्मिंग का एक मुख्य कारक है।