Thar पोस्ट जितेंद्र व्यास। बीकानेर का इतिहास रोचकता से भरा है। इसमे दशहरा महोत्सव का इतिहास रहा है। यह किसी रोचक कथा से कम नहीं है। बीकानेर में वह कौनसा इलाका है जहाँ इसकी शुरुआत हुई? वो कौन लोग थे जो इसके साक्षी बने। और पहला दशहरा कहाँ मनाया गया?
असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक दशहरा पर्व की शुरुआत भी ऐतिहासिक तरीके से हुई। दरअसल, बीकानेर में राजाओं के जमाने या रियासतकाल में दशहरा पर्व कुछ अलग अंदाज में मनाया जाता था। राजाओं के जमाने में स्थानीय एमएन हॉस्पिटल वाला व इसके पास का इलाका ‘रावण चौक’ कहलाता था। इस चौक में बड़े आकार के कागज पर रावण की तस्वीर बनाई जाती थी। तब तत्कालीन राजा ही इस पर तीर चलाते थे। वास्तविकता दिखाने के लिए डोरी आदि से संयोजन किया जाता था। इस तरह परंपरा का निर्वाह किया जाता था। घरों में लकड़ी के धुआं छोड़ते चूल्हों पर प्रसाद बनता था। तब बीकानेर के अधिकांश घरों में सफेद कली नीले रंग से पुताई आदि का चलन था। बाद में इसमें बदलाव हुआ। देश की जनता आजाद भारत मे नई उमंग तरंग के साथ आगे बढ़ी, तो इसके तौर तरीकों में भी बदलाव आया। यहां हुई आधुनिक दशहरे की शुरुआत
आधुनिक दशहरे की शुरुआत वर्ष 1954 में हुई। यह ऐतिहासिक साल था। इसी वर्ष पहली बार रेलवे स्टेडियम में बीकानेर का पहला दशहरा मनाया गया। मजे की बात यह है कि उस वर्ष केवल रावण के पुतले का ही दहन हुआ। यानि मेघनाद व कुम्भकरण व लंका आदि का दहन नहीं हुआ। इसकी वजह संसाधनों में कमी को भी माना जाता है। इसके बाद वर्ष 1955 में यह पर्व मुख्य स्टेडियम में यानि वर्तमान के डॉ करणी सिंह स्टेडियम में होने लगा। उस वर्ष यानि पहले साल 1954 से पुतले तैयार करने का कार्य उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के शोरगर ताराचंद परिवार द्वारा किया गया। जो कि वर्षो तक बीकानेर आये। उन्होंने बीकानेर की जनता को नायाब आतिशबाजी से दीदार कराया। किंतु कुछ वर्षों पूर्व उनका इंतकाल होने के बाद यह कार्य उत्तरप्रदेश के गौतमनगर के इस्लामुद्दीन एंड पार्टी ने किया। बाद में अन्य शोरगर भी आये। बीकानेर में अब अनेक स्थानों पर समारोह होता है। इनमे स्टेडियम के अलावा मेडिकल कॉलेज मैदान, धरणीधर खेल मैदान, भीनासर आदि में दशहरा पर्व मनाया जाता है। यहां रावण, कुम्भकरण, मेघनाद के पुतले व सोने की लंका का दहन होता है। अब ताड़का आदि को भी जलाया जाता है। पुतलों के दहन से पहले भव्य आतिशबाजी का प्रदर्शन किया जाता है। इन आतिशबाजी में रात की रानी, चमनबहार, जुगनू, सुदर्शन चक्र सहित अनेक जोरदार आधुनिक तकनीक के साथ नयनाभिराम जलवों का दीदार होगा। दशहरा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष व संस्थापक मेहरचंदजी के साथ पूर्व में लिए साक्षात्कार पर आधारित।