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IMG 20241023 101608 103 राजस्थान में खाप पंचायतों पर लगेगी रोक, हाईकोर्ट का निर्णय Bikaner Local News Portal राजस्थान
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Thar पोस्ट न्यूज। राजस्थान हाईकोर्ट ने सामाजिक बहिष्कार, नाता प्रथा और खाप पंचायतों जैसी सामाजिक बुराइयों पर रोक लगाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। जस्टिस फरजंद अली की सिंगल बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पांच सदस्यीय आयोग का गठन किया है, जो ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर इन कुप्रथाओं की जमीनी हकीकत की रिपोर्ट तैयार करेगा।

दरअसल, आयोग में चार वरिष्ठ अधिवक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता को शामिल किया गया है। रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवश्यक निर्देश जारी करेगा। आयोग को संबंधित जिलों के पुलिस अधीक्षकों से पूरा सहयोग मिलेगा।

राजस्थान के पश्चिमी जिलों में खाप पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार, अवैध जुर्माना, जबरन नाता प्रथा और अन्य सामाजिक कुप्रथाएं आम हो गई हैं। अदालत ने इन मामलों को सख्ती से रोकने के लिए एक ठोस कार्ययोजना बनाने की जरूरत बताई है। जानकारी के मुताबिक यह आयोग खाप पंचायतों के अवैध फरमान, सामाजिक बहिष्कार के मामले और नाता प्रथा जैसी कुप्रथाओं का विस्तृत अध्ययन कर पीड़ित परिवारों और प्रभावित लोगों से बातचीत करेगा।

इन जिलों में असर अधिक

इस दौरान राजस्थान हाईकोर्ट ने विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान के जिलों में सामाजिक बुराइयों के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है। जोधपुर ग्रामीण, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, नागौर और पाली जैसे जिलों में खाप पंचायतों के तानाशाही फरमानों की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।

इन जिलों के गांवों में आयोग का दौरा होगा। वहीं, पुलिस स्टेशनों का निरीक्षण कर मामलों की समीक्षा की जाएगी। साथ ही गांवों के सरपंच, ग्राम सेवक और ब्लॉक विकास अधिकारियों से भी चर्चा होगी।

हाईकोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय आयोग में चार वरिष्ठ अधिवक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता को शामिल किया गया है। इसमें एडवोकेट रामावतार सिंह चौधरी, एडवोकेट भागीरथ राय बिश्नोई, एडवोकेट शोभा प्रभाकर, एडवोकेट देवकीनंदन व्यास और सामाजिक कार्यकर्ता महावीर कांकरिया को शामिल किया गया है। ये सभी सदस्य कोर्ट कमिश्नर के रूप में कार्य करेंगे और अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश करेंगे।

राजस्थान में सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की लंबे समय से मांग उठ रही थी। क्योंकि नाता प्रथा, सामाजिक बहिष्कार, अवैध पंचायत फरमान और महिलाओं के अधिकारों के हनन जैसी प्रथाएं संविधान के मूलभूत अधिकारों के खिलाफ हैं। इसलिए राजस्थान हाईकोर्ट के इस फैसले की चारों तरफ सराहना हो रही है।


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