Thar पोस्ट, न्यूज। भारत में जितने दूध का उत्पादन पशुओं के माध्यम से हो रहा है उससे कहीं अधिक गुना दूध बाजार में उपलब्ध रहता है। यह करोड़ों टन दूध आखिर कहां से आ रहा है ? देश के कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि भारत हर साल 17 करोड़ टन दूध का उत्पादन कर रहा है। लेकिन देश में दूध की खपत तो 64 करोड़ टन सालाना हो रही है, यानि उत्पादन से लगभग 4 गुना ज्यादा। इस 17 करोड़ टन के अलावा दूध घरों में व बाज़ार में कहां से आ रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मांग की पूर्ति हो कैसे रही है। स्पष्ट है कि उत्पादन और खपत के बीच खेल हो रहा है। इस खेल में आपकी सेहत तो बिगड़ ही रही है, किसानों के फायदे पर भी बट्टा लग रहा है।
दूध में होती है यह मिलावट
देशभर में दूध में मिलावट का खेल चल रहा है। दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए पानी तो मिलाते ही हैं. इसके अलावा यूरिया, स्किम्ड मिल्क पाउडर का भी इस्तेमाल होता है। जबकि नकली दूध बनाने में डिटर्जेंट पाउडर, साबुन, सिंथेटिक दूध का भी इस्तेमाल होता है. दूध में फैट दिखाने के लिए वेजिटेबल ऑयल और फैट का इस्तेमाल होता है. दूध को फटने से बचाने के लिए हाइपोक्लोराइड्स, क्लोरामाइंस, हाइड्रोजन पैराऑक्साइड, बोरिक एसिड का इस्तेमाल होता है. दही, पनीर, मक्खन और क्रीम बनाने में भी हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड कर चुका स्वीकार
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड अनेक बार नकली दूध के कारोबार को स्वीकार कर चुका है। वर्ष 2018 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलुवालिया देश में बिकने वाले करीब 68 प्रतिशत दूध और उससे बने उत्पादों को नकली बताया था और कहा कि यह उत्पाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। अहलुवालिया ने दूध और उससे बनने वाले उत्पादों में मिलावट की पुष्टि करते हुए कहा था कि सबसे आम मिलावट डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफाइन तेल के रूप में की जाती है।