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Thar पोस्ट न्यूज (जितेंद्र व्यास)। बीकानेरी भुजिया का बेमिसाल स्वाद दुनियाभर में मशहूर है। बीकानेर पहुंचने वाला शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो यहां के भुजिया का जिक्र ना करें। बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के शासन के दौरान अस्तित्व में आये भुजिया का व्यवसाय 100 साल से भी ज़्यादा पुराना है। बीकानेर की भुजिया, दुनियाभर में नमकीन का पर्याय बन चुकी है। राजस्थान में बीकानेरी भुजिया बनाने के लघु उद्दोगों से लाखों लोग जुड़े हैं लेकिन बीकानेरी भुजिया में एक बड़ा बदलाव आ रहा है। इसे कोई भी ग्राहक महसूस भी कर सकता है। दरअसल, बीकानेर में नहरी क्षेत्रफल बढ़ने से वातावरण में नमी बढ़ी है। इसका असर भुजिया पर भी हुआ है। बीकानेर के एक भुजिया व्यापारी ने बताया कि पिछले एक दशक में वातावरण में हल्की नमी रहने लगी है। इसके चलते भुजिया को पॉलीथिन के बड़े कवर से ढकना पड़ता है। बारिश के दिनों में समस्या और ज्यादा हो जाती है। वहीं प्रतिदिन भुजिया खाने वाले गाहक का कहना है कि लिफाफे में रखा भुजिया एक दिन में ही नमीयुक्त सा होने लगता है। पहले ऐसा नही था। जबकि पॉलीथिन में बंद भुजिया खराब नहीं होता। यही वजह है कि बीकानेर में खुले भुजिया के साथ पैकिंग भुजिया का चलन भी बढ़ रहा है। अनेक नामचीन कंपनियां तो एयरटाइट पैकिंग में भुजिया की सप्लाई कर रही है ताकि खराब ना हो। बीकानेर की भुजिया यहां के हवा, पानी व जलवायु में ही तैयार होती है।
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बीकानेर में 100 साल से अधिक पुराना भुजिया कारोबार समय के साथ तेज़ी से बढ़ रहा है। भुजिया की छोटी-बड़ी करीब 250 यूनिट हैं, जहां रोजाना 200 टन भुजिया बनाया जाता है। इससे पांच लाख लोगों को इस उद्योग से रोजगार मिल रहा है। भुजिया के क्षेत्र में बीकाजी एक बड़ा नाम है। बीकानेरी भुजिया का इतिहास 144 साल पुराना है। बीकानेर में सन 1877 में महाराजा डूंगर सिंह के शासन में भुजिया बनाने का काम शुरू हुआ था। भुजिया का विचार आगरा से आया था। वहां दाल मोठ का चलन काफी था। वहां इसे सेव बोला जाता है। बीकानेर में हर दिन 200 टन उत्पादन होता है।