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1647173168416 1647173167757 1647173167371 995686556914 scaled 1 बीकानेर में आज जैसलमेर के महारावल ने कही ये बात Bikaner Local News Portal जैसलमर
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Thar पोस्ट, बीकानेर/ जैसलमेर न्यूज। जैसलमेर पूर्व रियासत के महारावल चैतन्यराज सिंह ने रविवार को बीकानेर में कहा कि हर व्यक्ति का समाज, परिवार, दोस्तों व अपने काम के प्रति कुछ न कुछ दायित्व होता है। इसे निभाने के लिए गंभीर होना चाहिए। इतिहास की बड़ी गाथाओं को पुस्तक में समायोजित करने से वह हमेशा के लिए न केवल ‘अमर’ हो जाती है बल्कि आने वाली युवा पीढ़ी को भी इसकी जानकारी अच्छे से हो जाती है। ब्रह्म गायत्री सेवाश्रम के अधिष्ठाता पं. रामेश्वरानंद जी पुरोहित के पावन सानिध्य में बतौर मुख्य अतिथि चैतन्यराजसिंह रविवार को टाऊन हॉल में जाने-माने डिंगल कवि भंवर पृथ्वीराज रतनू की ‘मगरे रो मोती-मिनजी रतनू’ पुस्तक का विमोचन कर अपनी बात कह रहे थे।

राजस्थान के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सहायक निदेशक हिंगलाजदान रतनू ने बताया कि युवा पीढ़ी को।उसे अच्छे-बुरे की समझ करवाकर भी हम अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं। हमारा दायित्व है कि युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाएं, ताकि आने वाला कल अच्छा हो। मिनजी रतनू को नमन करते हुए चैतन्यराज सिंह बोले कि भाटी व राठौड़ वंश के बीच हुए तनाव को रोकने के लिए मिनजी रतनू ने प्राणों की आहूति दी, उनका यह बलिदान शांति, सद्भावना, भाईचारा स्थापित करेगा। रतनू के जीवन चरित्र पर लेखक भंवर पृथ्वीराज रतनू ने स्वर्ण अक्षरों में पिरोकर पुस्तक लिखी है। उन्होंने लेखक को बहुत-बहुत बधाई पे्रषित की। पं. रामेश्वरानंदजी पुरोहित ने कहा कि जो धर्म की रक्षा करते है धर्म उनकी रक्षा करता है। उन्होंने उपस्थित लोगों से कहा कि गाय माता की सेवा करें, गाय माता का अत्याचार कभी सहन नहीं करें। यह संकल्प यहां से लेकर जाएं और गौसेवा के लिए सतत् प्रयास करें। तभी मां करणी व भगवान श्रीकृष्ण की कृपादृष्टि हम पर पड़ेगी।

भंवर पृथ्वीराज रतनू ने कहा कि चारण राजपूतों को मरते हुए देख नहीं सकता था और अपना बलिदान पहले देता था। वे बोले कि वे बड़ी परम्परा के वाहक है, तब के समय मिनजी के पिता चैन्ननाथ जी ने गडिय़ाला को लूटने के लिए बचाया लेकिन उस लड़ाई में वो मारे गए। बाद में उनके पुत्र मिनजी ने राज्यों की आपस में भिडंत हुई सेना को समझाने की कोशिश की लेकिन जब सेना नहीं मानी तो कटारी खाकर बलिदान दिया।

उस समय ऐसी परम्परा थी कि राजपूत लोग चारणकुल का रक्त जमीन पर बिखर जाए तो उसका उल्लंघन नहीं करते थे और जब मिनजी रतनू ने बलिदान दिया तो लड़ाई वहीं रुक गयी और सैकड़ों लोगों का रक्तपात्र एकबारगी रुक गया। उन्होंने कहा कि पुस्तक ‘मगरे रा मोती’ मिनजी रतनू लिखी गयी है जो दो वंशों का आपस में सम्बन्धों का निरुपण करता है कि इनके आपस में एक हजार वर्ष तक कैसे सम्बन्ध रहे, देश सेवा के सम्बन्ध रहे। यह सब पुस्तक में लिखा है।

ये भी रहे मंचासीन

अध्यक्षता करणी मंदिर निजी प्रन्यास, देशनोक के अध्यक्ष गिरिराज सिंह बारहठ ने की वहीं विशिष्ट अतिथि पुस्तक के प्रकाशक जयवीर सिंह रावलोत थे। मुख्य वक्ता जोधपुर की प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. प्रकाश अमरावत थीं।

पुस्तक के मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार दीपसिंह भाटी व पत्रवाचन डॉ. किरण कविराज ने किया। मंचासीन करण प्रताप सिसोदिया, मानवेंद्र सिंह भी मौजूद रहे। जगदीश रतनू, कैलाश सिंह रतनू व सवाई सिंह रतनू ने सभी का स्वागत करने के साथ-साथ आगंतुकों का आभार जताया।

कार्यक्रम में ये भी रहे उपस्थित

इस मौके पर कर्नल हेमसिंह, मनोज सियाणा, जोरावर सिंह, पूर्व विधायक रेवंतराम, डॉ. बी.एल.खजोटिया, डॉ. कुलदीप बिट्ठू, खींवसिंह भाटी, ठाकुर महावीर सिंह, घनश्याम, किशोर राजपुरोहित, प्रभुदान चारण, सुरेंद्र सिंह देपावत, नरसिंहदान बीठू, ओमप्रकाश किनिया, लाधूदान, नारायण सिंह चारण, ओमप्रकाश खीनिया, एस.पी.सिंह, जयसिंह, डुकसा, सूरजाराम, नारायण सिंह हदां, प्रदीप सिंह चौहान, जगत सिंह, अजीत सिंह, चारण महासभा शेखावाटी के माधोसिंह, गिरिराज सिंह, श्याम सिंह हाडलां, जानकीनारायण श्रीमाली, अमर सिंह, पवनदान, गिरधारी सिंह, मोहन सिंह, महेंद्र सिंह, विक्रम सिंह गडिय़ाला, गणेश स्वामी, पवन स्वामी, मनोज लूणा, अनोपसिंह, लाधुराम दासोड़ी, भगवानदान, ईश्वरराम, ओंकार सिंह, विमला डुकवाल, शशि किरण, विक्रांत नाहटा, शीतल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।


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