


Thar पोस्ट विशेष (जितेंद्र व्यास)। दूर तक फैले धोरों के बीच जब पहली बार सड़क बनी तो लोग दंग रह गए। बाद में जैसे-जैसे आवश्यकता महसूस की गई वैसे-वैसे रेतीले स्थान को चीर कर सड़कों का निर्माण किया जाने लगा। रियासतकाल में निर्मित सड़कों का जो जाल बिछाया गया वह दशकों बाद आज भी बरकरार है। बीकानेर स्थापना दिवस पर हम आपको बता रहे है कि ‘ऊंटों वाले धोरों वाले देश’ मे पहली सड़क कहाँ बनी?
गेट व शहर सफील तक
बीकानेर के भौगोलिक परिदृश्य को देखते हुए सड़कों का जाल बिछाया गया। बीकानेर नगर समुद्र की सतह से 734 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। बीकानेर नगर के बीच में एक जैन मन्दिर बना हुआ है। इसके निकट से पांच मार्ग निकलते हैं जो अन्य सड़कों से मिलते हुए शहरपनाह के किसी दरवाजे तक जा मिलते हैं। शहरपनाह में बसा नगर ऊंचा भू भाग है। इसके चलते बारिश का पानी नहीं ठहरता। शहरपनाह, शहर सफील या परकोटे का घेरा साढ़े चार मील तक फैला है। पत्थर से निर्मित इसकी चौड़ाई छह फुट और ऊंचाई अधिकतम 25 से 30 फुट है। इसमें अनेक दरवाजे बने हुए हैं जिनमें कोटगेट, जस्सूसर गेट, नत्थूसरगेट, शीतलागेट व गोगागेट के नाम से जाने जाते हैं। इसके अलावा अनेक बारियां यानि छोटे गेट बने हुए हैं। सभी गेट व बारियों तक पहुंचने के लिए सड़कों का इस्तेमाल होता है। सर्वप्रथम यहां कांकर रोड का निर्माण हुआ था। बीकानेर में पहली बार वर्ष 1906-07 में शिवबाड़ी से नागणेचीजी, गजनेर से कोडमदेसर, गजनेर से कोलायत तक तीन सड़कों का निर्माण हुआ। इसका खर्च बीकानेर के राय बहादुर सेठ कस्तूरचंद डागा एवं उनके छोटे भाई सेठ सुगनचंद डागा ने दिया।



बीकानेर की सड़कों पर एक नजर
1894-96 बीकानेर से गजनेर।1907-08 कोटगेट से रेलवे स्टेशन।1911-12 बीकानेर रेलवे स्टेशन से गंगाशहर, किले के चारों ओर सड़क।1914-15 किंग एडवर्ड मेमौरियल रोड का सुधार।1915-16 कोटगेट से दाऊजी मन्दिर, चौतीना कुआ से रायबहादुर सार्दुल सिंह निवास तक।1917-18 जूनागढ़ रोड से केईएम रोड तक फुटपाथ बना, पब्लिक पार्क गेट से गढ़ तक फुटपाथ, राजकीय डूंगर कॉलेज से रेलवे स्टेशन तक फुटपाथ बना। 1920-21 चौतीना कुआं सर्किल। 1924-25 लालगढ़ से लालगढ़ रेलवे स्टेशन।1926-27 में जूनागढ़ से दशहरा चबूतरा, वर्तमान एम.एन. हॉस्पीटल का क्षेत्र। 1935-36 में सड़क मरम्मत व गंदे पानी की नालियों का निर्माण।1942-43 भईया कुए से दम्माणी चौक, रांगड़ी चौक से रामपुरिया होते हुए लोहारों तक। इसके बाद बांठिया चौक से तेलीवाड़ा व बैदों का चौक, सुनारों की बड़ी गुवाड़, मरूनायक मन्दिर से आचार्य चौक, मोहता चौक से मोहता अस्पताल, नगरसेठ लक्ष्मीनाथ मन्दिर से गौशाला तक। रियासतकाल में बनी सड़कें बाद में नेताओं के नाम से जानी जाने लगी।
किंग एडवर्ड व जिन्ना रोड बाद में सुभाषमार्ग।
इनमें केईएम रोड व जिन्ना रोड प्रमुख है। हालांकि केईएम रोड का नामकरण बाद में किंग एडवर्ड मेमौरियल रोड कर दिया गया। वहीं जिन्ना रोड का नामकरण सुभाष मार्ग किया गया। हालांकि ये दोनों ही मार्ग अपने पुराने नाम से भी जाने जाते हैं।
अतिक्रमण भी जारी
शहर की सड़कें सुविधा के हिसाब से बनाई गई, लेकिन इन पर अतिक्रमण भी जारी है। पुराना बड़ा बाजार, फड़बाजार , केईएम रोड सहित अनेक स्थानों पर दुकानों के आगे अतिरिक्त पाटे लगा दिए गए हैं अब तो कॉलोनियों में भी सड़के सिकुड़ रही है। हालांकि समय-समय पर प्रशासन की ओर से कार्रवाई की जाती है। लेकिन कुछ ही दिनों मेंं हालात जस के तस हो जाते हैं।




