Tp न्यूज़। राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के तहत ‘बायो गैस संयंत्रों की जैविक खेती एवं पर्यावरण संरक्षण में भूमिका’ विषयक एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण शिविर शुक्रवार को कृषि अभियांत्रिकी विभाग एवं कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान् में स्वामी विवेकांनद कृषि संग्रहालय सभागार में आयोजित हुआ।
उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. पी. सिंह ने की। उन्होंने कहा कि विकास की अंधाधुंध दौड़ में जलवायु में बड़ा परिवर्तन आया है। इसके अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम बायोगैस को ईंधन के विकल्प के रूप में अपनाएं। किसानों, खासकर पशुपालकों को इस तकनीक से अवगत करवाएं तथा बायो गैस की अधिक से अधिक इकाईयां स्थापित के लिए इन्हें प्रेरित करें।
प्रो. सिंह ने मरुस्थलीय क्षेत्र की मौसम संबंधी प्रतिकूलताओं और पानी की कम उपलब्धता के बारे में बताया तथा कहा कि इस क्षेत्र में पशुपालन हमेशा किसानों का सहारा बना है। खेती के साथ पशुपालन करने वाले तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ कमाते हैं। इसे समझते हुए विश्वविद्यालय द्वारा समन्वित कृषि प्रणाली इकाई स्थापित की गई है। छोटी जोत के किसानों के लिए यह वरदान साबित हुई है। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण में आए किसानों को इकाई का अवलोकन करवाया जाए तथा परम्परागत खेती के साथ पशुपालन एवं उद्यानिकी को अपनाकर किसानों को अधिक सशक्त एवं समर्थ बनाया जा सकता है, इसकी जानकारी दी जाए।
प्रसार शिक्षा निदेशक डाॅ. एस. के. शर्मा ने कहा कि कृषि रसायनों के अंधांधुध उपयोग का दुष्परिणाम हमारे सामने हैं तथा हम एक बार फिर जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में बायोगैस तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में वर्ष 1954 से किसानों द्वारा इसे अपनाया जाता रहा है, लेकिन आज के दौर में इसे और अधिक प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
काजरी अध्यक्ष डाॅ. एन. डी. यादव ने कहा कि बायो गैस इकाईयों की स्थापना किसानों के लिए उद्यमिता विकास, जैविक खेती के प्रोत्साहन के साथ ऊर्जा स्त्रोत में वृद्धि की राह आसान करेगी। उन्होंने कहा कि गुजरात एवं महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के किसान इसका उपयोग कर रहे हैं। मरुस्थलीय क्षेत्र के किसान भी इसे अपनाएं।
राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के समन्वयक डाॅ. एन. के. शर्मा ने कहा कि बायो गैस प्लांट किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम है। इससे दूरदराज के क्षेत्रों के किसानों की ईंधन की मांग की आपूर्ति की जा सकती है। उन्होने बताया कि विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय बीज परियोजना द्वारा खरीफ फसल के लिए मूंग, मोठ और ग्वार के गुणवत्तायुक्त बीज विक्रय के लिए तैयार किए गए हैं। इच्छुक किसान यह बीज खरीद सकते हैं।
कार्यक्रम समन्वयक इंजी. जे. के. गौड़ ने कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में बताया। इस दौरान बायो गैस उत्पादन तकनीक एवं इसके उपयोग, विभिन्न प्रकार के बायो गैस संयंत्र, इनका संचालन एवं रख रखाव, जैविक खेती में इनकी भूमिका, बायोगैस संयंत्र एवं पर्यावरण संरक्षण सहित विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों के व्याखन हुए। कुलपति ने प्रशिक्षण से संबंधित पुस्तक का विमोचन किया तथा गोबर गैस प्लांट चलाने वाले किसानों को सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सीमा त्यागी ने किया। इस दौरान संग्रहालय प्रभारी डाॅ. दीपाली धवन, रतन सिंह शेखावत, राजेन्द्र सिंह शेखावत, गिरीश आचार्य सहित विभिन्न क्षेत्रों के किसान मौजूद रहे।