


Thar पोस्ट न्यूज (जितेंद्र व्यास) राजस्थान का नाम पर्यटन के लिहाज से समृद्ध है। यह राज्य अपने लोक संगीत के मामले में भी काफी धनी है। यहां के कलाकारों ने विश्व के अनेक देशों के लोगों को झूमने के लिए मजबूर किया हे। धोरों और ऊंटों वाले रेगिस्तान में कहीं गायकी का कमाल है तो कहीं लोकनृत्य की धूम। यहां वाद्ययंत्रों से बहने वाले सुर, लय, ताल देखने-सुनने वालों को मंत्र मुग्ध कर देते हैं। इन कलाकारों की बेमिसाल प्रस्तुतियों के कारण यहां के अनेक वाद्ययंत्र भी लोकप्रिय हो गए है। इनमें अलगोजा, मोरचंग, खड़ताल अब किसी परिचय के मोहताज नहीं है।


राजस्थान में एक ऐसा नृत्य है जो कि देश-विदेश में खासा लोकप्रिय हुआ है। इसका नाम है -तेरह ताली नृत्य। दरअसल यह नृत्य पाली, नागौर और जैसलमेर जिले की कामड़ जाति महिलाओं द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया जाता हे। कामड़ जाति का यह नृत्य अब विश्व के अनेक देशों में धूम मचा चुका
इस नृत्य को तेरह ताली इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें हाथ और पांव में तेरह मंजीरों का इस्तेमाल किया जाता है। ये मंजीरे खनकती आवाज के साथ नृत्य के दौरान बारी-बारी से लयबद्ध तरीके से बजते हैं और पूरे वातावरण में एक मन मोह लेने वाला संगीत गंूजता है।
इस नृत्य को करने वाली महिला, पारम्परिक तरीके से राजस्थानी वेशभूषा में रहती है। नृत्य करने वाली महिला के पांव की एड़ी से घुटने तक नौ मजीरे एक विशेष क्रम में बंधे होते हैं। इसी तरह एक-एक मजीरा उस महिला के दोनों हाथ की कुहनियों पर होते हैं। इसी तरह दोनों हाथ की अंगुलियों पर दो मजीरे खुली हुई स्थिति में होते हैं। मंजीरों का संयोजन और कलात्मकता के साथ बजाना इस तेरह ताल की विशेषता है।
रामदेवजी के भजनों की प्रस्तुति
कामड़ जाति की महिलाओं द्वारा यह नृत्य लोक देवता बाबा रामदेवजी की आराधना के तौर पर किया जाता है। नृत्य के दौरान पुरुष तानपुरे और चौतारा आदि वाद्ययंत्रों के साथ बाबा रामदेव जी की लीलाओं का गुणगान करते हैं।
नृत्यांगना की भाव भंगिमा और मजीरे
इस नृत्य में महिला की भाव भंगिमा के साथ मजीरों का एक साथ बजना मायने रखता है। इसलिए कामड़ जाति की महिलाएं इसके लिए सघन अभ्यास करती है। तभी इस नृत्य में महिला पारंगत हो पाती है। मजीरे सही नहीं बजने पर पूरी लय-ताल गड़बड़ा जाती है। नृत्य के दौरान महिला को संतुलन का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है। कामड़ जाति के घरों में परम्परा के तौर पर इसे सीखा जाता है।
तेरह ताली करते समय नृत्यांगनाएं सिर पर पूजा की थाली, कलश, दीपक रखकर, मुंह में तलवार दबाकर अनेक भंगिमाओं के साथ शारीरिक संतुलन रखते हुए बैठकर यह नृत्य करती है बीच में लेटकर झूमते हुए तेरह ताली की प्रस्तुति दी जाती है। पाली जिले के पादरला गांव की मांगीबाई जर्मनी, स्पेन, कनाड़ा, अमरीका, रूस, इटली आदि में प्रस्तुति दे चुकी है।

