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IMG 20241023 101608 92 लेखकीय मन की परिपक्वता को दर्शाते हैं 'अनहदनाद' के गीत: डॉ. गुप्त  **कवि चौपाल Bikaner Local News Portal साहित्य
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पढ़ने में जितनी सरल, समझने में उतनी ही गूढ़ हैं सभी रचनाएं: जोशी, हरि शंकर आचार्य के हिंदी गीत संग्रह ‘अनहदनाद’ का हुआ विमोचन

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Thar पोस्ट न्यूज बीकानेर। हरि शंकर आचार्य के गीत विषयों की वैविध्यता लिए हैं। इनमें प्रकृति के सभी रंग हैं। पंछियों का कलरव है। जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाने वाले ये गीत, सृजन की दुनिया में विशेष स्थान हासिल करेंगे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. उमाकांत गुप्त ने रविवार को जिला उद्योग संघ सभागार में हरिशंकर आचार्य की चौथी पुस्तक और पहले हिंदी गीत संग्रह ‘अनहदनाद’ के विमोचन के दौरान यह उद्गार व्यक्त किए।

मुक्ति संस्था, शब्दरंग और सूर्य प्रकाशन मंदिर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान डॉ. गुप्त ने कहा कि पुस्तक के सभी के सभी गीत विषयों की दृष्टि से परिपक्व हैं। इनकी लयबद्धता इन्हें और अधिक पठनीय बनाती हैं। उन्होंने कहा कि यह गीत रचना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हैं। आचार्य इस पर खरे उतरे हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक में सभी रसों को समाहित करने का प्रयास किया गया है।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ कवि कथाकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि ये गीत मन का नाद हैं। अनहदनाद को समझना और महसूस करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। आचार्य के गीत इस नाद तक पहुंचने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहा कि बीकानेर में लयबद्ध गीत रचने की समृद्ध परंपरा रही है। आचार्य ने इसका अनुसरण करते हुए नया अध्याय रचा है। यह गीत समझने में जितने सरल और सहज हैं, इनके अर्थ उतने ही गूढ़ हैं। जो कवि मन की परिपक्वता को दर्शाते हैं।

इससे पहले अतिथियों ने मां सरस्वती के छायाचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की और ‘अनहदनाद’ का लोकार्पण किया। आचार्य ने अपनी सृजन यात्रा के बारे में बताया और अनहदनाद, किताब, जय जय हिंदुस्तान सहित विभिन्न गीत प्रस्तुत किए। जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष द्वारका प्रसाद पचीसिया और दुर्गा शंकर आचार्य भी इस दौरान मौजूद रहे।
पत्रवाचन करते हुए हरीश बी. शर्मा ने पुस्तक के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संग्रह के गीतों की विषय वस्तु के बारे में बताया और कहा कि साहित्य के आलोक पर यह गीत लंबे समय तक आलोकित रहेंगे।

वरिष्ठ गीतकार राजाराम स्वर्णकार ने स्वागत उद्बोधन दिया। उन्होंने बीकानेर की साहित्यिक परम्परा के बारे में बताया। गोपाल जोशी ने आभार जताया। कार्यक्रम का संचालन संजय आचार्य ‘वरुण’ ने किया। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संस्थाओं और लोगों द्वारा आचार्य का अभिनंदन किया गया।

आचार्य द्वारा यह पुस्तक जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक दिनेश चंद्र सक्सेना को समर्पित की गई। आचार्य ने अपने माता-पिता को पहली प्रति भेंट की।

इस दौरान दुर्गा शंकर आचार्य , डी पी पच्चीसिया , डॉ. अजय जोशी, योगेंद्र पुरोहित, इरशाद अज़ीज़, डॉ. चंद्र शेखर श्रीमाली, अब्दुल शकूर सिसोदिया, आनंद जोशी, डॉ. गौरव बिस्सा, राहुल जादूसंगत, हेमाराम जोशी, प्रेम नारायण व्यास, नरसिंह भाटी सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।

राष्ट्रीय कवि चौपाल की 504वीं कड़ी में कवियों ने भरी मायड़ भाषा की मान्यता के लिए हुंकार, प्रजापत, आचार्य, व्यास, बाफना व गुर्जर ने खूब बटोरी तालिया

बीकानेर। राष्ट्रीय कवि चौपाल की 504वीं कड़ी का आयोजन राजीव गांधी मार्ग स्थित भ्रमण पथ के चौपाल प्रांगण में हुआ। यह कड़ी राजस्थानी भाषा की मान्यता को समर्पित रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि साहित्यकार डॉ गौरीशंकर प्रजापत ने की। कवियित्री सुधा आचार्य मुख्य अतिथि थीं, वहीं कवि विप्लव व्यास, कवि रोशन बाफना व सुनीता गुर्जर बतौर विशिष्ट अतिथि मंच पर आसीन हुए। कार्यक्रम की शुरुआत कवियित्री सरोज भाटी ने सरस्वती वंदना से की।

इस दौरान गौरीशंकर प्रजापत ने म्हारी जुबान रौ खुलो ताळो पण चाबी सरकार रै हाथ में, जी भर सार संघर्ष तो सरकार होगी साथ में रचनाएं प्रस्तुत की। सुधा आचार्य ने मातृ भाषा बिन हिंवड़े री पीड़ कियां दूर होवे, ए आठ करोड़ राजस्थानी पूछे म्हारी मानतां बिन भाषा बिन्या म्हारो मोल कियां होवे व विप्लव व्यास ने राजस्थानी भासा री मानता सारू आखै राजस्थानियां ने इण भासा नै परोटण री मेहताऊ आवसयकता है रचना प्रस्तुत की। रोशन बाफना ने संघर्षों की वेला आई लाई है इक शुभ संकेत, व्यर्थ होगा नहीं मेरा आना यहां व हम नहीं मुहब्बत में इतवार रखने वाले आदि रचनाएं प्रस्तुत की। सुनीता गुर्जर ने नारी हूं मैं न्यारी हूं रचना प्रस्तुत की।

इसके अतिरिक्त जुगल किशोर पुरोहित ने मायड़ म्हारी मात है कविता सुनाई। रामेश्वर साधक ने काम धाम चाहे कीं नीं हुवे पण कैवे म्हाने मरण रो टैम कोनी, प्रमोद शर्मा ने अठै अंधेर घुप्प है देखी मां अबके स्याणा चुप है,.सागर सिद्दिकी ने बात करने का सलीका हो तो पत्थर बोलते हैं,..शिव दाधीच ने वाणी के जादूगरों मात शारदे के बेटों… डॉ कृष्ण लाल विश्नोई ने आग भणावे रोटियां, सेके, महबूब अली ने जिंदगी री धना धन गाड़ी चलावे पेड़, सरोज भाटी ने तन तो माटी रौ पुतलो सुनाई।

लीलाधर सोनी ने माण दे दो रै मायड़ भाषा ने, कैलाश टाक ने हरी भरी बेल बल रही, शिव शंकर शर्मा ने मायड़ भाषा री मान्यता सारू, शकूर बीकाणवी ने पागल हुआ हूं इतना गुंजे तराना, राजकुमार ग्रोवर ने हंसने वालों के साथ लोग सदा ही हंसते हैं, सुभाष विश्नोई ने जाते बसंत ने गिरते पतों से कहा, महेश बड़गुर्जर ने जादू करग्यो कानुडो़ खेले, कैलाश दान चारण ने जग में जो आकर माया को समझ कर रचना प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त राजू लखोटिया ने बांसुरी वादन किया। वहीं पवनपुत्र चढ्ढा ने मेरा दिल ये पुकारे आ जा गीत गाया। कार्यक्रम का संचालन राजस्थानी कवि जुगल किशोर पुरोहित किया। रामेश्वर साधक ने आभार व्यक्त किया। चौपाल की इस कड़ी का समापन राष्ट्रगान से हुआ।


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