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IMG 20250108 125608 एक जुनून का नतीजा था ऊँट उत्सव ? ग्रहण के साये से यूं उभरा ! Bikaner Local News Portal अंतरराष्ट्रीय, पर्यटन
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Thar post (जितेंद्र व्यास)। रेत के दूर तक फैले समुंदर के बीच बसे बीकानेर को ‘ऊंटों वाला देश’ प्राचीन समय में कहा जाता था। अमेरिका में जाया जन्मा ऊंट अब पश्चिमी राजस्थान के गावों की न केवल आजीविका की रीढ़ है बल्कि पडौसी देश से सुरक्षा की तय प्रथम पंक्ति में भी शामिल है। यह राजस्थान की अलहदा संस्कृति का अहम् हिस्सा भी है। ऊंट के सम्मान सजदा करते हुए हर साल बीकानेर में ऊंट उत्सव का आयोजन होता है। इतिहास की बात करें तो बीकानेर में इसका आगाज भी दिलचस्प तरीके से हुआ।
दरअसल वर्ष 1993 में बीकानेर के एक पर्यटन अधिकारी राजेंद्र सिंह शेखावत बजरंग धोरे पर हुए एक समारोह में मुख्य अतिथी थे। पूर्व विधायक नन्दलाल व्यास ने यह समारोह रखा था। यहाँ उनका ऊंट ‘काजलिया‘ गजब का थिरका। इसी दृश्य को जेहन में लिए राजेंद्र सिंह अपने पर्यटन कार्यालय पहुंचे। उन दिनों जूनागढ़ में पर्यटन कार्यालय हुआ करता था। सहायक निदेशक ने तुरंत योजना बनाकर राज्य सरकार को भेज दी। लेकिन सोचा गया कोई कार्य आसान नहीं होता। सरकार से जवाब मिला कि पर्यटन कैलेंडर के हिसाब से कोई भी महीना खाली नहीं है। जनवरी में तेज सर्दी के कारण कोई उत्सव संभव नहीं है। इस पर जीवटता के धनी राजेन्द्र सिंह ने जनवरी ही मांग लिया। कुछ बाधाओं के साथ 1994 में कतरियासर और डॉ करणी सिंह स्टेडियम में इसका आगाज हुआ। आयोजन से शुरू से दिवंगत जगदीश पुरोहित खेमसा सहित अनेक लोग इससे जुड़ते गए। यह भी रोचक है कि

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहाँ ऊंटों का इतना सम्मान किया जाता है। यहाँ तक की लाख रुपए तक इसका श्रृंगार किया जाता है। बीकानेर की संस्कृति का एक अहम् हिस्सा है रेगिस्तान का जहाज। आज बात करूंगा एक ऐसी घटना के बारे में जिसने ऊंट उत्सव के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया, तब इस पर एक तरह से ग्रहण लग गया था। लेकिन इस बार भी इस उत्सव की शुरुआत करने वाले राजेंद्र सिंह शेखावत और उनके सहयोगियों की जीत हुई।
राज्य सरकार ने 1997 में उत्सव के लिए बजट की व्यस्वस्था नहीं की। सरकार ने उस साल उत्सव को अनुपयोगी माना। इस पर सहायक निदेशक ने बीकानेर में एक बैठक बुलाई तथा अपनी मंशा जाहिर की। इसमें सभी ट्रेवल एजेंट्स, होटल संचालकों, पर्यटन व्यवसाय करने वालों, गाइड आदि ने एकजुटता दिखाई। सभी ने एक स्वर में कहा कि उत्सव होकर रहेगा। हमारे हाथ से नहीं जायेगा। उन दिनों में 50 हज़ार रूपए की व्यवस्था आपसी सहयोग से की गयी। इस तरह निजी सहयोग से बीकानेर में ऊंट उत्सव बंद होने से बचा। हालांकि इसके बाद से सरकार ने उत्सव का बजट हमेशा बढ़ाया।


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