Thar पोस्ट, न्यूज। देश में रेडियो के बेताज बादशाह अमीन सयानी नहीं रहे। आज लोग चेहरे से अपनी पहचान बनाते हैं, लेकिन कुछ शख्सियत ऐसी भी रही हैं जिनका वजूद उनकी आवाज रही है। आजादी के बाद रेडियो सुनने का दौर आया। सत्तर, अस्सी और नब्बे का दशक ऐसा ही रहा, जब लोगों में रेडियो सुनने का क्रेज गजब का था। तब रेडियो सिर्फ आवाज नहीं, एहसास था। यह ना जाने किन-किन लम्हों का साथी भी रहा। आजादी के बाद जिन लोगों ने रेडियो को आम लोगों तक पहुंचाया, इसकी लोकप्रियता बढ़ाई, उनमें सबसे अव्वल नाम अमीन सयानी का आता है। एक दौर था, जब अमीन सयानी रेडियो की आवाज थे। रेडियो की आवाज मतलब अमीन सयानी थे। आज ‘रेडियो किंग’ अमीन सयानी का निधन हो गया। हार्ट अटैक से 91 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।भाईयों और बहनों’ शब्द का प्रयोग आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब-करीब अपने सभी भाषणों में करते हैं। यह शब्द तब लोकप्रिय हुआ जब सन 1952 में रेडियो सिलोन से अमीन सयानी ने ‘बिनाका गीतमाला’ प्रस्तुत किया था। रेडियो पर जैसे ही उनका सुपर हिट प्रोग्राम ‘बिनाका गीतमाला’ शुरू होता, तो वक्त जैसे थम जाता था। बेहद जोश-व- खरोश और मेलोडियस अंदाज में रात 8:00 बजे रेडियो पर जब ये आवाज गूंजती “जी हां भाइयों और बहनों, मैं हूं आपका दोस्त अमीन सयानी और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला”, तो एक जादू चल जाता था। लोग दिल थाम कर बैठ जाते थे। रेडियो सिलोन से एक भारी और दिलकश आवाज आती। श्रोताओं के साथ मजाक करते, उन्हें छेड़ते, उन्हें दिलचस्प वाकये सुनाते, कलाकारों के इंटरव्यू लेते और इन सब पर हिंदी फिल्मी गानों का तड़का लगाते हुए। अमीन सयानी ने देश दुनिया मे जो समां बांधा था उसकी यादें लोगों के जेहन में रहेगी।