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IMG 20240104 WA0155 राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलने से दुखी-डॉ. राजपुरोहित Bikaner Local News Portal साहित्य

Thar पोस्ट, न्यूज। साहित्य अकादेमी सर्वोच्च राजस्थानी पुरस्कार 2023 से पुरस्कृत डॉ. राजपुरोहित का साक्षात्कार – प्रधानमंत्री की इच्छा शक्ति पर निर्भर हैं राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता। हाल ही में राजस्थानी काव्य-कृति ‘पळकती प्रीत’ पर केंद्रीय साहित्य अकादेमी का सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त करने वाले राजस्थानी भासा-साहित्य के प्रतिष्ठित कवि-आलोचक एवं जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि यह पुरस्कार दरअसल यह एक बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हैं, जिसे सच्चे मन व समर्पित भाव से निभानी हैं। अभी तक राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलने से दुखी डॉ. राजपुरोहित ने अपने मन की पीड़ा प्रकट करते हुए कहा कि- “प्रदेश के राजनेताओं की उदासीनता के कारण अभी तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिल सकी हैं। अब राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का मामला देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इच्छा शक्ति पर निर्भर हैं, वे चाहे तो लोक सभा चुनाव से पहले प्रदेश के बारह करोड़ लोगों के सपने को साकार कर सकते हैं।” राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को समर्पित, सकारात्मक दृष्टि से परिपूर्ण व युवा शक्ति के पर्याय डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित से महत्वपूर्ण बातचीत के कुछ अंश –

● आपकी राजस्थानी कृति ‘ पळकती प्रीत ‘ का वर्ण्य-विषय क्या है ?

  • पळकती प्रीत राजस्थान के मध्यकालीन प्रेमाख्यानों को आधुनिक दृष्टि के साथ मानवीय संवेदना से परिपूर्ण प्रबंध काव्य के रूप में एक नव सृजन है । इसमें मूमल – महेन्दर, ढोला-मारू, जेठवा-ऊजळी, बाघो-भारमली, नरबद- सुपियारदे, सैणी-बीझाणंद, आभल- खींवजी, नागजी-नागवती, जलाल- बूबना, सोरठ – बींझौ, केहर- कंवळ जैसे जगजाहिर ग्यारह प्रेमाख्याओं को आधुनिक दृष्टि से कविता रूप में रचा गया हैं।

● साहित्य अकादेमी के इस सर्वोच्च अवार्ड में क्या मिलता हैं?

  • साहित्य अकादेमी अवार्ड प्रत्येक रचनाकार के जीवन का एक सपना होता हैं। साहित्य जगत में यह सर्वोच्च अवार्ड है जिसके लिए प्रत्येक रचनाकार इसे अपना सौभाग्य मानता हैं । इण पुरस्कार के अंतर्गत ताम्र फलक, शाॅल, श्रीफळ, स्मृति चिह्न एवं एक लाख ₹ ससम्मान प्रदान किये जाते हैं।

● आपने यह कृति और यह पुरस्कार किसे समर्पित किया और क्यों ?

  • असल में राजस्थानी भाषा-साहित्य में मुझे ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डॉ.) अर्जुनदेव चारण का महत्वपूर्ण सान्निध्य मिला । उनसे सदैव कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहा है। यदि यह कह दूं कि वे मेरे सृजन के आदर्श है तो कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात नहीं हैं। कोरोना काल के दरम्यान लिखी यह कृति मैंने उन्हें ही समर्पित की है सो यह पुरस्कार श्रद्धेय डाॅ.अर्जुनदेव चारण को समर्पित करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है।

● राजस्थानी भाषा-साहित्य को लेकर आज का युवा क्या सोच रहा है ?

  • राजस्थानी भाषा-साहित्य को लेकर आज का युवा बिल्कुल सकारात्मक है। वो अपनी मायड़ भाषा और साहित्य से हदभांत जुड़ा हुआ है । लगातार महत्वपूर्ण सृजन कर रहा है । इसकी संवैधानिक मान्यता को लेकर भी अत्यधिक सजग और सावचेत है । यही कारण है कि प्रदेश में आज का युवा राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के आंदोलन में अपनी सबल भूमिका निभा रहा है ।

● आधुनिक राजस्थानी में महिला लेखिकाएं किस तरह का सृजन कर रही है ?

  • राजस्थानी समाज में महिलाएं सदैव दोहरी जिम्मेदारी निभाती रही हैं । महत्वपूर्ण बात यह है कि राजस्थानी साहित्य में वे सदैव सार्थक सिरजण करती रही हैं। आज गर्व की बात तो यह है कि आधुनिक साहित्य की सभी विधाओं में राजस्थानी महिलाएं भारतीय भाषाओं के बरोबर सृजन कर रही है ।

● देस की आजादी के छिहत्तर बरसो बाद भी राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता क्यों नहीं मिली ? आने वाले समय में इस भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलेगी या नहीं ?

  • यह बात सही है कि राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का आंदोलन देश की आजादी से पहले से चल रहा है । राजस्थानी एक समृद्ध व स्वतंत्र भाषा है जिसे अमेरिका और नेपाल जैसे देशों ने मान्यता दी है। इसका एक हजार वर्षो से ज्यादा प्रामाणिक इतिहास व विशाल साहित्य भंडार है । माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, महाविद्यालयों अर विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ाया जा रहा हैं । यूजीसी पढ़ने वालों को पी-एएच-डी. के लिए स्कॉलरशिप दे रही है। चुनाव में राजनेता इसी भाषा में आम जन से वोट मांगते हैं । इस भाषा के साहित्यकारों को भारत सरकार पद्मश्री प्रदान करती है । पर दुर्भाग्य यह है कि प्रदेश के राजनेताओं की उदासीनता के कारण आजादी के छिहत्तर बरस बाद भी हमारी मायड़ भाषा राजस्थानी संवैधानिक मान्यता को तरस रही है । अब यह मसला देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा पर निर्भर है। वे जब चाहेंगे उसी दिन राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिल जायेगी। कहा जा सकता हैं कि आशा अमर धन हैं, सो मुझे भरोसा है कि आने वाले समय में अपनी मायड़ भाषा को प्रदेश की सरकार पहली राजभाषा व केन्द्र सरकार संवैधानिक मान्यता प्रदान कर संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल करेगी । निश्चित ही प्रत्येक राजस्थानी के लिए स्वर्ण-सूर्य उस दिन उदय होगा, जिस दिन राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलेगी ।

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