Thar पोस्ट, न्यूज,जोधपुर । राजस्थानी भाषा-साहित्य पूरी दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है क्योंकि यहां के रचनाकारों ने अपनी मातृभाषा में अपने लोक को कभी भी अनदेखा नहीं किया । आधुनिक राजस्थानी साहित्य में विजयदान देथा ऐसा ही एक लोक चितेरा रचनाकार है जिनके साहित्य में समय बोलता है । यह विचार साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा के संयोजक एवं ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डॉ.) अर्जुनदेव चारण ने राजस्थानी विभाग द्वारा आयोजित विजयदान देथा की 97 वीं जयंती एवं राजस्थानी-सभागार के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये। उन्होंने लोक शब्द की पौराणिक सन्दर्भ से व्याख्या करते हुए कहा कि विजयदान देथा ने लोक के मूंन को तोड़कर अपनी मातृ भाषा में कालजयी सृजन किया है ।
समारोह संयोजक एवं राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि इस अवसर पर जेएनवीयू के कुलपति प्रोफेसर (डाॅ.) के.एल श्रीवास्तव ने राजस्थानी भाषा-साहित्य पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विजयदान देथा राजस्थानी की आत्मा है। उन्होंने देथा की कहानियों पर बनी हिन्दी फिल्मों का उल्लेख करते हुए कहा कि देथा ने अपनी कलम से पूरी दुनिया में राजस्थानी मातृभाषा और साहित्य की सौरम बिखेरी है । प्रोफेसर श्रीवास्तव ने राजस्थानी भाषा को विश्व की समृद्ध भाषा बताते हुए इसे संवैधानिक मान्यता देने की जोरदार पैरवी की। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत प्रतिष्ठित कवि-समालोचक मधु आचार्य ‘आशावादी ‘ ने अपने मुख्य आतिथ्य उदबोधन में कहा कि विजयदान देथा एक लोकधर्मी रचनाकार है जिन्होंने परम्परागत राजस्थानी लोक कथाओं का नई दृष्टि से नव-सृजन किया। उन्होंने विजयदान देथा को राजस्थानी साहित्य का पर्याय बताया। कला संकाय अधिष्ठाता प्रोफेसर (डाॅ.) कल्पना पुरोहित ने विजयदान देथा की रचनाओं में लोक दृष्टि पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जो रचनाकार लोक को अनदेखा करता है उसे लोक भी महत्व नहीं देता। राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने विजयदान देथा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए राजस्थानी विभाग एवं सभागार निर्माण पर विस्तार से अपनी बात रखी।
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा पद्मश्री विजयदान देथा के कृतित्व पर प्रोफेसर (डाॅ.) कल्पना पुरोहित एवं डाॅ.गुंजन देथा द्वारा लिखित ‘ क्राफटिंग इटरनिटि ‘ ( एक्सप्रलोरिंग विजयदान देथा फाॅक पोटपोरी ) नामक पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया। युवा रचनाकार महेन्द्रसिंह छायण ने लोकार्पित पुस्तक पर आलोचनात्मक पत्र-वाचन किया। समारोह में राजस्थानी सभागार में सकारात्मक सहयोग के लिए राजस्थानी शोधार्थी डाॅ.कप्तान बोरावड़, जीवराजसिंह चारण, मदनसिंह राठौड़, सवाईसिंह महिया, स्वरूपसिंह भाटी, अतिथि शिक्षक जगदीश मेघवाल, विष्णुशंकर, मगराज, डाॅ.भींवसिंह, विभागीय कर्मचारी सुमेरसिंह शेखावत, शंकरलाल प्रजापत, पी.एस.यादव, समुद्रसिंह बुझावड़, डाॅ. रामरतन लटियाल, डाॅ.इन्द्रदान चारण, अनुराग हर्ष बीकानेर, डाॅ.गुंजन देथा का सम्मान किया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। राजस्थानी परम्परानुसार मेहमानों के स्वागत के पश्चात डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने स्वागत उद्बोधन दिया। विभागीय सदस्य डाॅ.धनंजया अमरावत ने आभार ज्ञापित किया । समारोह का संचालन युवा लेखक डाॅ. रामरतन लटियाल ने किया। कार्यक्रम में प्रतिष्ठित रचनाकार मीठेश निर्मोही, प्रोफेसर मीना बरड़िया, डाॅ.मीनाक्षी बोराणा, डाॅ.महेन्द्रसिंह तंवर, भंवरलाल सुथार, शक्तिसिंह चांदावत, मोहनसिंह रतनू , किरण राजपुरोहित, दिनेश पांचाल, वाजिद हसन काजी, डाॅ.देवकरण, खेमकरण चारण, डाॅ. श्रवण कुमार, डाॅ.जितेन्द्रसिंह साठिका, डाॅ.अमित गहलोत, डाॅ. एम एल गेवां, मनीष सिंघवी, डाॅ.कालूराम देशवाली सहित राजस्थानी भाषा-साहित्य के अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, शोध-छात्र एवं विधार्थी मौजूद रहे।