Thar पोस्ट। फिल्मकार संजय लीला कुछ हटकर फ़िल्म बनाने के लिए मशहूर है। इस बार उनकी चर्चा हीरामण्डी की वजह से है। हीरामंडी’ पाकिस्तान, लाहौर स्थित रेडलाइट एरिया है, जिसे ‘शाही मोहल्ला’ के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी में रहे कि भारत पाकिस्तान के बंटवारे से पहले ‘हीरामंडी’ की तवायफें देशभर में मशहूर थीं. उस समय कोठे पर राजनीति, प्यार और धोखा सब देखने को मिलता था. मुगलकाल के दौरान अफगानिस्तान और उजबेकिस्तान की महिलाएं भी ‘हीरामंडी’ में रहने के लिए आ गई थीं। उस समय तवायफ शब्द को गंदी निगाहों से नहीं देखा जाता था. मुगलकाल में तवायफें संगीत, कला, नृत्य और संस्कृति से जुड़ी हुई थीं. ये वो दौर था जब तवायफें सिर्फ राजा-महाराजाओं का मनोरंजन करती थीं.मुगल दौर खत्म होने लगा और ‘हीरामंडी’ पर विदेशियों का आक्रमण हो गया. ब्रिटिश शासनकाल में ‘हीरामंडी’ की चमक फीकी पड़ने लगी. यही नहीं, अंग्रेजों ने ‘हीरामंडी’ की तवायफों को वेश्या (प्रॉस्टिट्यूट) नाम भी दिया. ‘हीरामंडी’ की चमक ऐसी फीकी पड़ी कि आज तक उस इलाके की रौनक वापस नहीं लौटी. आजादी के बाद सरकार ने यहां आने वाले लोगों के लिए कई बेहतरीन इंतजाम भी करवाए, पर फिर भी बात नहीं बनी.हीरामंडी’ का नाम सिख महाराजा रणजीत सिंह के मंत्री हीरा सिंह डोगरा के नाम पर रखा गया था. ‘हीरा सिंह’ ने ही यहां अनाज मंडी का निर्माण कराया था, जिसके बाद इस जगह का नाम ‘हीरामंडी’ रख दिया गया. पहली बार करण जौहर की फिल्म ‘कलंक’ में ‘हीरामंडी’ का जिक्र किया गया था. पहले की तुलना में शाही मोहल्ला अब शाही नहीं रह गया. दिन के समय में ये आम मार्केट की तरह नजर आता है, लेकिन जैसे-जैसे शाम होती है, ‘हीरामंडी’ रेड लाइट एरिया में बदल जाती है।