


Thar पोस्ट न्यूज। जितेंद्र व्यास। ऊंट उत्सव पर एक विशेष कथा। बीकानेर को ऊंटों वाला देश प्राचीन समय में कहा जाता था। अमेरिका में जाया जन्मा ऊंट अब पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों की न केवल आजीविका की रीढ़ है बल्कि पडौसी देश से सुरक्षा की तय प्रथम पंक्ति में भी शामिल है। यह राजस्थान की अलहदा संस्कृति का अहम् हिस्सा भी है। ऊंट के सम्मान सजदा के लिये हर साल बीकानेर में ऊंट उत्सव का आयोजन होता है। बीकानेर जैसे शहर में इसका आगाज भी दिलचस्प तरीके से हुआ।
दरअसल वर्ष 1993 में बीकानेर के एक पर्यटन अधिकारी राजेंद्र सिंह शेखावत बीकानेर के बजरंग धोरे पर एक समारोह में मुख्य अतिथी थे। पूर्व विधायक नन्दलाल व्यास ने यह समारोह रखा था। यहाँ उनका ऊंट काजलिया गजब का थिरका। इसी दृश्य को जेहन में लिए राजेंद्र सिंह अपने पर्यटन कार्यालय पहुंचे। उन दिनों जूनागढ़ किले में पर्यटन कार्यालय हुआ करता था। सहायक निदेशक ने तुरंत योजना बनाकर राज्य सरकार को भेज दी। लेकिन सोचा गया कोई कार्य आसान नहीं होता। सरकार से जवाब मिला की पर्यटन कैलेंडर के हिसाब से कोई भी महीना खाली नहीं है। जनवरी में तेज सर्दी के कारण कोई उत्सव संभव ही नहीं है। इस पर जीवटता के धनी राजेन्द्र सिंह ने जनवरी ही मांग लिया। कुछ बाधाओं के साथ 1994 में कतरियासर और डॉ करणी सिंह स्टेडियम में इसका आगाज हुआ। आयोजन से शुरू से जुड़े दिवंगत जगदीश पुरोहित खेमसा सहित अनेक लोग जुड़ते गए। इनकी कमी खलेगी: ऊँट उत्सव में इस बार जिस पर्यटन अधिकारी की कमी खलेगी, उनका नाम है पुष्पेंद्र प्रताप सिंह। वर्षों तक ऊंट उत्सव के सफल आयोजन में उनका खास योगदान रहा था। पीपी के नाम से पहचान रखने वाले पुष्पेंद्र सिंह ने देश के अन्य राज्यों में भी पर्यटन विकास के लिए आयोजित कार्यक्रमों का सफल आयोजन करवाया।







