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IMG 20221205 103606 पाकिस्तान में आज भी चलती घोड़ा ट्रेन ! पटरियों पर दौड़ता है घोड़ा, सर गंगाराम की अनुपम देन Bikaner Local News Portal अंतरराष्ट्रीय
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Thar पोस्ट, न्यूज। पाकिस्तान में आज भी एक गाँव मे ट्रेन और घोड़े का अजीब संयोग देखने को मिलता है। पाकिस्तान में एक जगह ऐसी भी है जहां पर ट्रेन में इंजन की जगह घोड़े को लगाया जाता है और घोड़ा ट्रेन को खींचकर मुसाफिरों को अपने मुकाम पर पहुंचाता है।मुसाफिरों के अजब सफर की ये गजब दास्तान पाकिस्तान में फैसलाबाद जिले की जारनवाल तहसील की है, जहां पर सौ सालों से भी ज्यादा समय से घोड़े के द्वारा ट्रेन को चलाया जा रहा है। यह ट्रेन यहां पर घोड़ा ट्रेन के नाम से मशहूर है और जारनवाला तहसील के दो गांवों बुचियाना से गंगापुर के बीच चलाई जाती है।ट्रेन को चलाने की भी दिलचस्प दास्तान है। अविभाजित पंजाब में उस वक्त भविष्य की सोचने वाले इंजीनियर सर गंगाराम रहते थे। फिरंगी साम्राज्य में उनके ऊपर पंजाब खासकर लाहौर के आसपास के इलाके के विकास की अहम जिम्मेदारी थी। उस वक्त सन 1890 में उन्होंने खेती के आधुनिकरण की जहमत उठाई और इसके लिए गंगापुर में बहने वाली नहर से पानी को सिचाई के लिए निकालने के लिए एक पंप मंगवाया। लाहौर से बुचियाना रेलवे स्टेशन की दूरी करीब 101 किलोमीटर है और पंप को लाहौर से गंगापुर ले जाना था। गंगापुर से नजदीक का रेलवे स्टेशन उस वक्त बुचियाना था। बुचियाना से गंगापुर इतना भारी पंप ले जाने के लिए कोई साधन नहीं था और बुचियाना से गंगापुर के बीच की दूरी तीन किलोमीटर थी, तब सर गंगाराम ने इस काम को पूरा करने के लिए स्पेशल ट्रेक बिछाने का आदेश दिया।इस ट्रेक पर पंप को लाने के लिए एक ट्रॉली को लगवाया गया और इस ट्राली को खींचने के लिए एक घोड़ा जोता गया। उस वक्त सर गंगाराम का सपना तो साकार हो गया और पंप गंगापुर गांव पहुंच गया, लेकिन इसके बाद यह घोड़ा ट्रेन गंगापुर और आसपास के इलाके के लोगों की लाइफलाइन बन गई।पंप लाने के लिए चलाई गई घोड़ा ट्रेन मुसाफिरों के सफर का बेहतरीन जरिया बन गई। 1898 में शुरू हुआ घोड़ा ट्रेन का सफर आज भी इस आधुनिक जमाने में बदस्तूर जारी है और मुसाफिर अपनी इस विरासत पर रश्क करते हुए इसका लुत्फ उठा रहे हैं। इस ट्रेन में एक घोड़ा जोता जाता है और एक समय में 15 लोग इस ट्रेन में बैठकर सफर कर सकते हैं। एक समय 1993 में पटरी के कुछ हिस्से चोरी होने और दूसरी तकनीकी दिक्कतों से इस ट्रेन का संचालन बंद हो गया था। उसके बाद 17 साल तक ट्रेन नहीं चल पाई। इसके बाद 2010 में ग्रामीणों की इच्छा को देखते हुए बीते जमाने की इस धरोहर के कायाकल्प का फैसला किया गया। फिर से स्थानीय प्रशासन और गांववासियों ने इसको पटरी पर दौड़ाने की ठानी और इसके लिए फंड का इंतजाम किया। ट्रेन को फिर से दौड़ाने के लिए फैसलाबाद प्रशासन ने 33 लाख रुपए, जारनवाला तहसील की नगर पालिका ने 40 हजार रुपए और गंगापुर के ग्रामीणों ने 17 लाख रुपए दिए। इस तरह से घोड़ा ट्रेन एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी।सर गंगाराम ने इसके अलावा लाहौर और आसपास के इलाकों में कई भव्य इमारतों की तामीर करवाई, जिसमें लाहौर म्यूजियम, एटिचसन कॉलेज, मेयो कॉलेज, लाहौर हाईकोर्ट, लाहौर पोस्ट ऑफिस जैसी मशहूर इमारतें शामिल है। यानी मुगलों के बसाए लाहौर शहर को आधुनिक स्वरूप देने का श्रेय सर गंगाराम को दिया जाता है।


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