Thar पोस्ट। अमूल की कहानी दिलचस्प है।ऐसा उदाहरण आपको दुनिया मे शायद ही देखने की मिले। अमूल भारत की एकमात्र सबसे बड़ी FMCG कंपनी है जिसके मालिक लाखों किसान हैं। अमूल की कहानी 75 वर्ष पुरानी है। गुजरात के दो गांवों से 75 साल पहले 247 लीटर दूध से शुरू हुआ सफर आज 260 लाख लीटर पर पहुंच गया है।अमूल ने इन 75 सालों में जो कुछ हासिल किया है शायद ही इसका कोई और उदाहरण देखने को मिलता है। इसने किसान परिवारों के सोश्यो इकोनॉमिक इंडिकेटर्स को पूरी तरह से बदल कर दिया। आखिर क्या है अमूल का वो मॉडल ? जिसने उसे सक्सेस दिलाई। अमूल फ्रेशनेस को मेंटेन करते हुए अपने प्रोडक्ट्स को कंज्यूमर तक कैसे पहुंचाता है?
अमूल का मॉडल तीन लेवल पर काम करता है:
1. डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी
2. डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन
3. स्टेट मिल्क फेडरेशन
अमूल दूध का उत्पादन करने वाले गांव के सभी किसान डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी के मेंबर होते हैं। ये मेंबर रिप्रजेंटेटिव्स को चुनते हैं जो मिलकर डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन को मैनेज करते हैं। डिस्ट्रिक्ट यूनियन मिल्क और मिल्क प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग करती है। प्रोसेसिंग के बाद इन प्रोडक्ट्स को गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड डिस्ट्रीब्यूटर की तरह काम कर मार्केट तक पहुंचाता है। सप्लाई चेन को मैनेज करने के लिए प्रोफेशनल्स को हायर किया जाता है। दूध के कलेक्शन, प्रोसेसिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रूप से करीब 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है।
अमूल का मॉडल बिजनेस स्कूल्स में केस स्टडी बन गया है। इस मॉडल में डेयरी किसानों के कंट्रोल में रहती है। यह मॉडल दिखाता है कि कैसे प्रॉफिट पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक पहुंचता है।
ऐसे लाखों लीटर दूध इकट्ठा होता है
गुजरात के 33 जिलों में 18,600 मिल्क को-ऑपरेटिव सोसाइटीज और 18 डिस्ट्रिक्ट यूनियन हैं। इन सोसाइटीज से 36 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं, जो दूध का उत्पादन करते हैं।दूध को इकट्ठा करने के लिए सुबह 5 बजे से ही चहल-पहल शुरू हो जाती है। किसान मवेशियों का दूध निकालते हैं और केन्स में भरते हैं। इसके बाद दूध को कलेक्शन सेंटर पर लाया जाता है।सुबह करीब 7 बजे तक कलेक्शन सेंटर पर किसानों की लंबी लाइन लग जाती है। सोसाइटी वर्कर दूध की मात्रा को नापते हैं और फैट कंटेंट भी नापा जाता है। ये सिस्टम पूरी तरह से ऑटोमेटेड होता है। हर किसान के दूध के आउटपुट को कंप्यूटर में सेव किया जाता है। किसानों की आमदनी दूध की मात्रा और फैट कंटेंट पर निर्भर करती है। किसानों को हर महीने एक निश्चित तारीख पर पेमेंट किया जाता है।
किसानों के लिए एक ऐप भी बनाया गया है, जिसमें उन्हें दूध की मात्रा और फैट से लेकर पेमेंट की जानकारी मिलती है। पेमेंट सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया जाता है।
पिछले दस सालों का अमूल का सेल्स टर्नओवर
अमूल और उससे जुड़े 18 डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स का संयुक्त टर्नओवर 53,000 करोड़ रुपए को पार कर चुका है। 2021-22 में संयुक्त रूप से 63,000 करोड़ रुपए के टर्नओवर की उम्मीद है।