सदैव रहा है नर्सिंग संकट
नर्सिंग का ये संकट नया नहीं है. पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन में बार-बार इस बात की चर्चा होती रही है कि महामारी के दौरान नर्सों की कमी से निपटा नहीं गया तो नतीजे बुरे होंगे. पिछले साल संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी ने कहा था कि देश के स्वास्थ्य विभाग को खबर ही नहीं है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा एनएचएस में कितनी, कहां और किस तरह की विशेषज्ञता वाला नर्सिंग स्टाफ चाहिए. सरकार ने 2025 तक पचास हजार नर्सों की भर्ती का वादा किया था लेकिन समिति का कहना था कि इसके लिए किसी तरह का सरकारी प्लान है ही नहीं.प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन की सरकार पर स्वास्थ्य जरूरतों को लेकर लगातार दबाव बना हुआ है. एक तरफ कोविड की चुनौती बरकरार है तो दूसरी तरफ इन सर्दियों में फ्लू से पंद्रह हजार से साठ हजार मौतों का अनुमान लगाती एकेडमी ऑफ मेडिकल साइसेंज की चेतावनी. हालात इशारा करते हैं कि नर्सों की कमी आगे ज्यादा भयानक रूप ले सकती है।पिछले दिनों लॉरी ड्राइवरों की कमी के चलते पेट्रोल की किल्लत और खाने-पीने के सामान की आमद पर हुए असर से ब्रेक्जिट के जमीनी असर की एक झलक दिखाई दी. ब्रेक्जिट के आम जीवन पर असर का एक और चिंताजनक उदाहरण नर्सों की कमी को भी कहा जा सकता है. ब्रिटेन में पेशेवर नर्सों की नियामक संस्था नर्सिंग ऐंड मिडवाइफरी काउंसिल के आंकड़े बताते हैं कि यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र से आकर ब्रिटेन में काम करने वाली नर्सों की संख्या में नब्बे फीसदी गिरावट आई है. काउंसिल रजिस्टर के मुताबिक मार्च 2016 तक ये संख्या 9,389 थी जो मार्च 2021 में गिरकर 810 तक पहुंच गई.
ईयू नागरिकता रखने वाले नर्सिंग स्टाफ में गिरावट की तस्दीक हाउस ऑफ कॉमंस लाइब्रेरी के आंकड़े भी करते हैं जिसके मुताबिक जून 2016 में ईयू से नर्सों की संख्या कुल नर्सों का 7.4 प्रतिशत थी. मार्च 2021 में संख्या गिरकर 5.6 प्रतिशत पर पहुंच गई. दिक्कतें यहीं नहीं थमी. जुलाई 2020 में रॉयल कॉलेज ऑफ नर्सिंग (आरसीएन) के एक सर्वे में ये सामने आया कि महामारी के तनाव भरे अनुभव के बाद हर तीन में से एक नर्स ने एक साल के भीतर एनएचएस छोड़ देने की इच्छा जताई. इसमें कम तनख्वाह के साथ-साथ नर्सों के योगदान को जरूरी सम्मान ना मिलने से उपजी हताशा भी सामने आई. बद से बदतर होते हालात पर बात करते हुए आरसीएन की इंग्लैंड निदेशक पैट्रिशिया मार्किस ने हाल ही में बीबीसी से कहा कि “हम विदेश से आने वाले नर्सिंग स्टाफ का स्वागत करते हैं. वे ब्रिटेन के लिए बेहद अहम हैं लेकिन सरकार को देखना ये चाहिए कि जिन नर्सों ने महामारी के दौरान काम किया है उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति क्या है.” अस्पतालों में स्टाफ की कमी के चलते मरीजों की लंबी होती प्रतीक्षा और स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा की खबरें भी इस तस्वीर का एक और पहलू है जिसके खिलाफ ब्रिटेन की सबसे बड़ी नर्सिंग ट्रेड यूनियन यूनिसन समेत छह मेडिकल संस्थानों ने हाल ही में आवाज उठाई थी। जानकारी में रहे कि एशिया के कुछ देशों खासकर भारत और श्री लंका से बड़ी संख्या में नर्सें uk में सेवा दे रही है इसके बाद भी वहां नर्सों का संकट बना हुआ है।