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IMG 20210829 WA0362 1 स्त्री अवचेतन तथा सृजन संभावनाओं को तलाशती डांस ऑफ लाइफ Bikaner Local News Portal बीकानेर अपडेट
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Tp न्यूज़, बीकानेर। अंग्रेजी साहित्त्य की व्याख्याता डॉ दिव्या जोशी की पुस्तक डांस ऑफ़ लाइफ का ऑनलाइन रविवार को विमोचन हुआ। विमोचन के कार्यक्रम में रॉशल पुत्कर और कवित्री डॉक्टर दिव्या जोशी का पुस्तक पर संवाद अत्यंत रोचक और प्रेरणास्पद रहा । कवित्री जोशी ने मिसिंग ,शैडो एक्साईल ,वी आर डिफरेंट,हूज फाल्ट आदि कविताओं का पठन किया कार्यक्रम के मुख्य अतिथि युयुत्सु शर्माने कवित्री को क्रांतिकारी कविता लेखन के लिए बधाई दी और शुभकामनाएं दी कि आप की कलम से कविताएं समाज के मार्ग को प्रशस्त करेंगे फिजी यूनिवर्सिटी के मुमताज अली ने कविताओं के संग्रह को प्रशांत महासागर की तरह गहरा बताया और कवित्री जोशी को फिजी यूनिवर्सिटी में वार्ता के लिए, कविता पाठ के लिए आमंत्रित भी किया। विमोचन कार्यक्रम के दौरान कवित्री से खुला संवाद कार्यक्रम भी रखा गया जिनमें श्रोताओं ने कई कविताओं पर डॉक्टर जोशी से प्रश्नोत्तरी की और उन्होंने उनका जवाब दिया । कविताओं को जेंडर मोमेंट से अलग होकर देखने का भी आग्रह डॉक्टर युयुत्सु शर्मा ने किया । प्रमोदिनी मैडम ने बताया यह कविताएं स्त्री की जिजीविषा का प्रतीक है, उसको समाज में खड़ा होने समाज के मान्यताओं से लड़ने और जीवन को जीने की प्रेरणा देती है उन्होंने कवित्री को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की ।पुस्तक का अत्यंत आकर्षक और विवेचना पूर्ण ध्यानाकर्षण डॉ प्रणीत जग्गी द्वारा किया गया जिसमें उन्होंने पुस्तक में संग्रहित 44 कविताओं को अनूठा बताया ।उन्होंने प्रत्येक कविता के अंदर निहित संदेश को सारगर्भित बताया ।
स्त्रियों के ठहरे हुए जीवन, सामाजिक मान्यताओं और बाध्यता में लिपटे हुए जीवन बंधन और पुरुष प्रधान समाज के अंदर स्त्री को स्वतंत्र ना जीने देने की मंशा पर प्रहार करती हुई कविताएं स्त्री मन को उन्मन करने का एक प्रयास भर है ।कविताएं स्त्री मन को उघाड़ने का प्रयास करती है उसको स्वयं के साथ आत्मसात करके जीने की प्रेरणा देती है ।और यही जीने की प्रेरणा जीवन नृत्य की तरह एक विधा बन जाती है, ऐसे ही प्रत्येक स्त्री मन को इन बंधनों को तोड़कर जीवन को नृत्य की तरह जीने का प्रयास करना पड़ेगा तभी सामाजिक और पारिवारिक जीवन बंधनों से मुक्त होकर जीवन एक नृत्य की तरह हो सकेगा….
स्त्रियों की वैयक्तिक जिंदगी में सृजन का बहाव कैसे हो यह स्त्री जगत को सोचना है और इस पर मिलकर काम करना है यह पुस्तक इसी थीम पर लिखी गई है स्त्री के अंदर नृत्य एक प्राकृतिक विधा है और यही विधा उसके द्वारा पारिवारिक जीवन और सामाजिक जीवन में कैसे स्थानांतरित हो इसका हम सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए और स्त्री जीवन को नृत्य की तरह देखने और जीने का केंद्र बने तभी वैश्विक उल्लास और आह्लाद की संभावना मनुष्य की जिंदगी में बन सकती है
डांस ऑफ लाइफ भाषा की संरचना से परे स्त्री मन के अंतरंग अचेतन की आवाज है I स्त्रीमन के हर स्पंदन को आईने के तरह सामने रखती हुई पुस्तक ‘डांस ऑफ लाईफ‘ स्त्री की कोमल अभिव्यक्ति के साथ ही उसके दुखों और शोषण के विरूद्ध शखंनाद भी है। यह बात जानी मानी पुरस्कार विजेता कवियत्री रोशेल पोतकर ने कवित्री दिव्या जोशी के काव्य संग्रह डांस ऑफ लाइफ के विमोचन के दौरान उनके साथ संवाद के दौरान कहीI इस ऑनलाइन विमोचन समारोह में नेपाल के जाने माने कवि तथा प्रतीक पत्रिका के संपादक युयुत्सु शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में तथा फिजी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मुमताज आलम उपस्थित थेI यह संवाद तथा विमोचन कार्यक्रम इकोसोफीकल फाउंडेशन फॉर द स्टडी ऑफ नेचर एंड एनवायरमेंट (EFSLE) द्वारा आयोजित किया गयाI डॉक्टर दिव्या जोशी के कहा यह स्त्री ही है जो दैनिन्दन विष निगल कर नीलकंठी तो बनी रह सकती है किंतु उसे जाहिर नहीं होने देती। दूसरा पक्ष यह भी है कि यही नारीमन यदि खुशियों की अनुभूति करती है तो उसे फूहार की तरह बिखेरने में संकोच नहीं करती। उनके अनुसार ‘स्त्रियों के लिये लेखन न केवल सृजन अपितु उनके अस्तित्व और बदलाव के लिये आवश्यक है। 44 कविताओं के इस संग्रह का मूल विचार स्त्री ही है। प्रकृति के साथ सौन्दर्य की सिम्फनी , स्त्री विषयक भावों , समाज की तीन मातृत्व पीढ़ियों के द्वंद्व व बदलती विचारशीलता , तथा शोषित, प्रताड़ित, अपमानित और हर तरह के संत्रास को भोगती स्त्री की असीम सहन शक्ति और उसके समर्पण की गाथा के रूप में यह कविता संग्रह अत्यंत ही पठनीय है यह विचार फाउंडेशन के निदेशक ऋषिकेश सिंह ने अपने वक्तव्य के दौरान कहा Iजानी-मानी कवित्री प्रणीत जग्गी तथा अलका के द्वारा की गई समीक्षा तथा अन्य पाठकों की समीक्षा को भी इस कार्यक्रम के दौरान प्रस्तुत किया गया I जाने-माने कवि युयुत्सु शर्मा के अनुसार (जीवन नृत्य) नारी की असीम संभावनाओं कोव्यक्त करने की प्रक्रिया में अद्भुत प्रयोग है। प्रोफेसर प्रमोदिनी वर्मा ने कहा की कुछ कविताएं जैसे ‘Whose Fault'(किसकी गलती ?) तथा “Shadows” प्रताड़ित और आलोचनाओं से बींधी हुई दुनिया की आधी आबादी की आवाज को दबाने के प्रयत्नों पर सटीक प्रहार कटाक्ष करती है। समीक्षक तथा आलोचक संजय पुरोहित के अनुसार यह एक ऐसा संग्रह है जो पठनीय होने के साथ ही संग्रहणीय भी है। उन्होंने कहा कि एक पाठक के नाते मैंने ये अनुभूत किया है कि संग्रह की हर रचना से गुजरते हुए बार बार यह महसूस होता है कि कवयित्री पूरी शिद्दत के साथ नारी के अंतहीन शोषण, तिरस्कार और हिकारत के प्रति बुलन्दी के साथ अपना विरोध दर्ज कराती है।


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